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594... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
प्राचीन प्रमाणों के अनुसार इन देवी-देवता को मूल गम्भारे (गर्भगृह) में स्थापित करना चाहिए। दूसरे, पुरुष प्रधानता के आधार पर तीर्थंकर के बायीं तरफ में शासन देवी तथा दाहिनी तरफ में शासन देव की स्थापना करनी चाहिए। वर्तमान में अधिकतर शासन देवी-देवता की मूर्तियों के लिए बाहरी रंग मंडप में देव कुलिकाएँ बनाई जाती है तो कई स्थानों पर प्रथम मंजिल में परमात्मा और नीचे के तल्ले में यक्ष-यक्षिणी को विराजमान करते हैं। शासन देव-देवी तीर्थंकर प्रभू के अनन्य सेवक होने से उनका स्थान स्वामी के निकट ही होना चाहिए। सम्भवत: गर्भगृह में स्थान की अल्पता के कारण उनकी स्थापना रंगमंडप में होने लगी है।
• शासन देव-देवी की स्थापना आवश्यक क्यों?
जैन धर्म को वीतराग धर्म कहा जाता है और जब वह वीतराग उपासना एवं वीतरागता प्राप्ति को ही लक्ष्य मानता है तथा वीतराग परमात्मा को ही अपना आराध्य तो फिर मन्दिरों में शासन देव-देवियों, अधिष्ठायक देव आदि की स्थापना क्यों करनी चाहिए? एक पक्ष से चिंतन करें तो यह तथ्य सही है. पर प्रत्येक पक्ष का चिंतन द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा से होना चाहिए। सामान्य लौकिक परम्पराओं का प्रभाव तथा जैन गृहस्थों का अन्य धर्मों की ओर अभिमुख होना इनकी मान्यता के लिए मुख्य कारण रहा है। देव-देवियों की मान्यता तो चार निकायों के अन्तर्गत मानी ही गई है। इन देवों का समावेश व्यंतर देवों में होता है। ये सम्यक्त्वी होते हैं और हमेशा तीर्थंकरों की सेवा में हाजिर रहते हैं। पुराणों में अनेक स्थानों पर इनके द्वारा शासन कार्यों में सहायक होने के उल्लेख मिलते हैं। तदुपरान्त यह समझ लेना परम आवश्यक है कि शासन देवी-देवताओं को तीर्थंकर से उत्कृष्ट मानना अथवा तीर्थंकरों की अवहेलना कर इनकी पूजा-अर्चना करना घोर-मिथ्यात्व है।
वस्तुत: शासन देव-देवियों को स्वपूजा से नहीं तीर्थंकरों की पूजा से ही आनंद मिलता है। वे तीर्थंकर पूजकों को स्वधर्मी मानकर ही उनकी सहायता करने में तत्पर रहते हैं। वस्तु स्थिति यह है कि तीर्थंकर परमात्मा की पूजा भक्ति करने से जो पुण्य अर्जित पुण्य होता है उसके प्रभाव से शासन देवी-देवता जिन उपासकों के संकटों को दूर करने सहयोगी होते हैं। सामान्यतया वीतराग परमात्मा स्वयं हमारी आत्म शुद्धि में निमित्त भूत बनते हैं, भक्तों के मार्ग को प्रशस्त करते हैं तब उनके शासन देवी-देवता अवधिज्ञान के प्रयोग द्वारा एवं