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580... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन प्रतिष्ठा को दोषी नहीं माना जा सके।
1. निमित्त ज्ञात करने का मुख्य प्रकार यह है कि प्रतिष्ठा का मुहूर्त निकलवाने के लिए स्थानीय ज्योतिषी श्रद्धावान हो तो उसके घर जायें अथवा दूसरे गाँव में ज्योतिषी अथवा आचार्य आदि के समीप जायें। गाँव से प्रस्थान करते वक्त शकुन देखने चाहिए। यदि अप्रार्थित शुभ शकुन हो जाये तो समझना चाहिए कि प्रतिष्ठा निर्धारित समय में हो जायेगी।
इस शकुन से प्रतिष्ठित मन्दिर भविष्य में उन्नतिकारक होगा या अवनतिकारक, निश्चित रूप से ज्ञात नहीं किया जा सकता। इस फलश्रुति के लिए मुहूर्त ज्ञाता तात्कालिक लग्न कुंडली बनाकर देखें। यदि कुंडली में लग्न, धन, पुत्र, स्त्री एवं लाभ स्थान गड़बड़ न हो और आठवें स्थान में कोई भी वर्जित ग्रह न हो तो ज्योतिषाचार्य मुहर्त्त प्रदान करें। यदि तात्कालिक प्रश्न कुंडली में लग्न की स्थिति सही न हो तो ज्योतिषी कहे कि 'किसी दूसरे दिन पूछने के लिए आना।'
यदि गृहस्थ ज्योतिषाचार्य के निवेदन को स्वीकार करके उस समय प्रतिष्ठा स्थगित कर दें तो वह प्रतिष्ठा को दोष का निमित्त बनने से बचा सकता है। इसी के साथ अशुभ का उदय समाप्त होने पर प्राप्त शुभ निमित्त के लग्न में प्रतिष्ठा करवाकर अभ्युदय का भागी हो सकता है।
2. जिस प्रकार प्रतिष्ठाचार्य का आत्मबल शुभाशुभ निमित्तों के आधार पर विकास एवं पतन को सूचित करता है उसी प्रकार उनका मनोबल प्रतिष्ठा में प्रभाव उत्पन्न करता है। जिसका आचरण शुद्ध हो, संकल्पशक्ति दृढ़ हो और आत्मपरिणाम शुभ हो ऐसे प्रतिष्ठाचार्य के हाथ से सम्पन्न हुई प्रतिष्ठा प्राय: शुभ परिणाम देती है। इसके विपरीत यदि प्रतिष्ठाचार्य आत्मविशुद्धि हीन हो, भग्न हृदयी हो, रोगादि कारणों से शारीरिक और मानसिक शक्तियाँ क्षीण हो चुकी हों तो उनके द्वारा सम्पादित प्रतिष्ठा का परिणाम अभ्युदय जनक नहीं होता।
3. प्रतिष्ठा होने के पश्चात तुरन्त अथवा उसी दिन किसी कारण से गाँव में अचानक लड़ाई-झगड़ा या क्लेशकारी स्थिति उत्पन्न हो जाये तो वह प्रतिष्ठा निश्चित रूप से अवनति का कारण बनती है इसलिए जिस गाँव में प्रतिष्ठा हो उस संघ के व्यक्तियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि प्रतिष्ठा के कुछ दिन बाद तक किसी तरह के दुर्निमित्त पैदा न हो।