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________________ प्रतिष्ठा सम्बन्धी विधि-विधानों का ऐतिहासिक... 569 श्रीचन्द्रसूरि के समय जिन प्रतिमा के आगे क्रयाणकों की भिन्न-भिन्न पुड़िया रखने-रखवाने की परिपाटी प्रवर्तित थी। तत्पश्चात आचार्य जिनप्रभसूरि स्वयं तो जिनबिम्ब के सम्मुख 360 क्रयाणकों की भिन्न-भिन्न पुड़िया रखने के पक्षधर परन्तु उनके समय में 360 क्रयाणकों को एक ही पुडी में बांधकर रखने-रखवाने की परम्परा प्रारम्भ हो चुकी थी। उसके बाद यह परिपाटी अद्यावधि पर्यन्त उसी रूप में प्रचलित है। मुद्रा अर्थात रुपया-पैसा- पूर्वकालीन प्रतिष्ठाओं में अथवा स्नात्रादि पूजाओं में सामग्री के रूप में रुपया-पैसा का उपयोग नहीं होता था, केवल भेंटरूप में उसकी प्रधानता थी । शेष पूजाओं में तो वासचूर्ण, गंध, पुष्प, धूप आदि को ही स्थान प्राप्त था । फिर धीरे-धीरे इन विधानों में रुपये ने भी प्रवेश किया। सर्वप्रथम एक-एक पूजा के पट्ट के ऊपर एक-एक रुपया चढ़ने लगा। इसके पश्चात शनै: शनै: प्रत्येक पद के लिए रुपया-पैसा होना चाहिए, ऐसा आग्रह प्रारम्भ हुआ। उसमें भी रुपया नहीं तो आठ आना, चार आना अथवा दो आना तो होना ही चाहिए, ऐसा कहकर विधिकारकों ने पैसा - रुपया रखने की प्रवृत्ति अनिवार्य रूप में शुरू कर दी। आधुनिक युग में शांतिस्नात्र पूजा हो अथवा अष्टोत्तरी वृद्धस्नात्र हो, उनमें पट्टे के ऊपर अभिषेक के अनुसार रुपये रखे जाएं तो पूजा अच्छी कही जाती है। फिर भले ही उन रुपयों का उपयोग किसी भी रूप में हो । मेवा अथवा सूखा फल- निर्वाणकलिका में सूखे फल का कहीं उल्लेख नहीं है। फल के रूप में मात्र श्रीफल और तंबोल के रूप में सुपारी को स्वीकार किया गया है। किन्तु निर्वाणकलिका के अनन्तर प्रत्येक प्रतिष्ठा कल्पकों द्वारा संकलित प्रतिष्ठा कल्पों में मेवा अथवा सूखा फल प्रतिष्ठा विधि के एक अंग रूप में रूढ़ हो गये हैं। प्रतिष्ठा आदि के उद्यापन के निमित्त से आयोजित श्री शान्तिस्नात्रादि बृहत् पूजा में जिन प्रतिमा के सम्मुख मेवा-सुपारी आदि रखने का विधान होने से आधुनिक विधिकारों द्वारा भी पूजनों में सूखा मेवा रखने का आग्रह होने लगा है। इससे आजकल भक्ष्याभक्ष्य का विवेक रखे बिना भी महापूजाओं में मेवा चढ़ाने की परिपाटी आवश्यक बन गई है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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