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प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्य ...553 लोक व्यवहार में भी पुष्प देकर हर्ष-प्यार-शोक आदि की अभिव्यक्ति की जाती है। इसी प्रकार कुसुमांजलि द्वारा परमात्मा के आगे अपने विनय, आदर एवं सम्मान आदि के भावों को शीघ्र पहुँचाने का उपक्रम करते हैं। वर्धमान सूरि ने आचार दिनकर में गणपति प्रतिष्ठा का उल्लेख किया है तथा बड़ी शांति में भी विनायक शब्द आता है तो क्या जैन धर्म में गणपति को मान्यता दी गई है?
पूज्य उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म.सा.के अनुसार आचार्य वर्धमान सूरि एक कट्टर ब्राह्मण थे। उसी परम्परा से प्रभावित होकर उन्होंने जैन विधिविधानों में गणपति प्रतिष्ठा का समावेश किया होगा। शांति पाठ में ‘विनायक' शब्द मंगल करने वालों का सूचक है। यहाँ पर मंगल करने वाले समस्त देवीदेवताओं का इसमें समावेश होता है। मांगलिक क्रिया अनुष्ठानों में लड्डू ही क्यों चढ़ाया जाता है? ___ लड्डू को मंगल का सूचक माना गया है। जिस प्रकार लड्डू अखंड, परिपूर्ण एवं ओर-छोर से रहित होता है वैसे ही मांगलिक कार्य भी निर्विघ्न रूप से पूर्णता को प्राप्त करें तथा ओर-छोर रहित हो। इस प्रतीक के रूप में शुभ अनुष्ठानों पर लड्डू चढ़ाते जाते हैं। इसे माणक लड्डू भी कहते हैं। महापूजन आदि में उपयोगी सामग्रियों का महत्त्व
सुपारी (पूंगीफल)- सुपारी का उपयोग एक प्रसिद्ध ताम्बुल के रूप में किया जाता है। यह अपने गुणधर्म के अनुसार स्वादिष्ट, रुचिवर्धक, मधुर, वात-पित्त-कफ आदि को दूर करने वाली और दुर्गन्ध नाशक है। पालनपुर के एक मंदिर में रोज 16 मण सुपारी चढ़ाई जाती थी। पूर्वकाल में जब नारियल या श्रीफल अधिक संख्या में उपलब्ध नहीं होते थे, तब उनके स्थान पर सुपारी रखी जाती थी।
लौकिक जगत में सुपारी को अखंड एवं मंगलकारी फल भी माना है। यह किसी भी श्रेष्ठ कार्य की अखंडता का सम्पूर्णता एवं प्रतीक है इसीलिए मंगल कार्यों में इसका उपयोग करते हैं।
नारियल (श्रीफल)- धर्मशास्त्रों में नारियल को एक मंगलकारी फल माना गया है। यह प्रकृति के अनुसार भारी, स्निग्ध, शीतल तथा तृषा, वमन, खुजली, पित्त आदि में लाभकारक है।