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प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्य ...551
अंजनशलाका विधान के तुरंत बाद दर्पण क्यों दिखाया जाता है?
अंजन विधान के दौरान की जा रही विविध क्रियाओं से जिनबिम्बों में वीतरागत्व आदि शक्तियों का संचरण होने से उनका तेज इतना बढ़ जाता है कि आचार्य आदि अपनी आँखों से देख नहीं सकते, अत: दर्पण के माध्यम से परमात्मा के दर्शन किए जाते हैं इसी के साथ प्रतिष्ठा-अंजनशलाका अच्छे से सम्पन्न हुई हो तो वह कांच या दर्पण भी उस तेज के प्रभाव से खंडित हो जाता है ऐसा प्रतिष्ठाचार्यों का अनुभव है। प्रतिष्ठा विधान में कुंभ आदि की स्थापना आवश्यक क्यों?
प्रतिष्ठा के दौरान कुंभ आदि की स्थापना मुख्य रूप से मांगलिक क्रिया के रूप में की जाती है। इसी के साथ इन विधानों के माध्यम से पाँच तत्त्वों की स्थापना भी की जाती है। कुंभ पृथ्वी तत्त्व, कुंभ स्थित पानी-जल तत्त्व, दीपक-अग्नि तत्त्व, बली बकुला-आकाश तत्त्व, ज्वारारोपण-वनस्पति तत्त्व एवं वायु तत्त्व। जब इन पाँचों तत्त्वों में हमारी भावनाएँ व्याप्त होती हैं तो सारा वायुमण्डल उससे प्रभावित होता है। जिसके कारण सभी कार्यों की निर्विघ्न सिद्धि होती है। प्रतिष्ठा आदि कार्यों में सुहागन स्त्रियों का ही उल्लेख है तो क्या विधवा स्त्रियाँ अमंगलकारी है? __ भारतीय परम्परा में वैधव्य को पापोदय माना गया है। सद्य: विधवा हुई स्त्री का मन दुख एवं शोक से युक्त होता है। इस कारण वातावरण में भी शोक एवं विषाद छा जाता है। जबकि प्रतिष्ठा आदि मंगल विधानों में हर्ष एवं आनंद का वातावरण होना चाहिए। हकीकत यह है कि सामने जैसा दृश्य होता है वैसे ही भाव बनते हैं। दुःखी व्यक्ति को देखकर मन में करुणा, दया, खेद आदि की स्थिति उत्पन्न होती है। वहीं मांगलिक दृश्यों को देखकर मन में आनंद एवं प्रमोद के भाव उत्पन्न होते हैं। लोक व्यवहार एवं परम्परा में भी विधवा स्त्रियों को मांगलिक कार्यों में अग्रणी नहीं रखा जाता, अतः यह लौकिक व्यवहार के विरुद्ध भी है। इन्हीं अपेक्षाओं से विधवा स्त्रियों को मांगलिक कार्यों हेतु अयोग्य माना गया है। अंजनशलाका-प्रतिष्ठा करवाने वाले आचार्य एवं खंडण-पीसण करने वाली महिलाएँ 'सकंकण' हों ऐसा क्यों कहा गया है तथा अंजनशलाका स्वर्ण शलाका से ही क्यों की जाती है?