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प्रतिष्ठा विधानों के अभिप्राय एवं रहस्य ...547 इन दोनों में सर्पादि विष को दूर करने का गुण भी होता है। विषैले जीवजन्तु का उपद्रव होने पर उस जगह इन वनस्पतियों का चूर्ण लगा दिया जाये अथवा उसका विधिवत सेवन किया जाये तो सम्भावित पीड़ा या हानि से बचा जा सकता है और मंगल कार्यों को यथोचित रूप से पूर्ण किया जा सकता है।
इन औषधियों को वन्ध्यत्व निवारक भी माना गया है। विवाह के अवसर पर नव दम्पत्ति के हाथों में बांधकर उन्हें संकेत दिया जाता है कि यदि संतान उत्पत्ति में बाधा उपस्थित हो तो इस फल के उपयोग से सफलता मिल सकती है।
इन औषधियों में आसुरी उपद्रवों को निरस्त करने की ताकत भी होती है। मंगल विधानों के दरम्यान इस तरह की विषम परिस्थिति उपस्थित हो जाये तो इन बूटियों के प्रयोग द्वारा उसे तुरन्त उपशान्त किया जा सकता है।
मरडाशिंग उदर जनित पीड़ाओं में विशेष लाभ देती है। यह शान्ति प्रदाता भी मानी गई है। इसके अतिरिक्त अन्य दुष्प्रवृत्तियों का निरोध करने एवं बुरी नजर से बचाने के लिए भी इन औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
इस प्रकार इन औषधियों को समीप रखने के अनेक उद्देश्य हैं। मंगल प्रसंगों में किसी भी समय इनका तत्क्षण प्रयोग किया जा सके, इस हेतु इन्हें हाथ में बाँधते हैं।
कौड़ी- हिन्दुस्तान में कौड़ी सर्वत्र सुप्रसिद्ध है। इसका उपयोग विविध साज-सज्जा के कार्यों में तथा मंगल रूप में कंकण डोरा के साथ भी किया जाता है। प्राचीन काल में अनेक मांगलिक विधानों में इसका प्रयोग होता था। औषधि निर्माण के रूप में भी इसका महत्त्व स्वीकारा गया है। __यह नेत्रों के लिए हितकारी, कर्ण रोग में लाभदायक एवं केल्शियम आदि की कमी में परम सहायक है।
विवाह एवं प्रतिष्ठा जैसे प्रसंगों में इसके विधिवत प्रयोग से त्वरित लाभ पाया जा सकता है। नूतन बिम्बों पर सप्तधान्यों का प्रक्षेपण क्यों किया जाता है?
प्रतिष्ठा सम्बन्धी कृत्यों में नूतन जिनबिम्बों पर दो-तीन बार सप्त धान्यों का प्रक्षेपण किया जाता हैं। इस क्रिया में 1. सन 2. लाज 3. कुलथी 4. जौ 5. कंगु 6. उड़द और 7. सरसों- इन सात धान्यों का प्रयोग करते हैं।