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प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...523 है। इससे स्पष्ट होता है कि होम जैन परम्परा की क्रिया नहीं है।
शंका- प्रतिष्ठा होने के पश्चात जिनबिम्ब के हाथ से कंकण डोरा कब खोलना चाहिए?
समाधान- यदि विशेष कारण हो तो प्रतिष्ठा होने के पश्चात उसी दिन सौभाग्यमंत्र को पढ़कर कंकण डोरा खोल देना चाहिए। यदि शीघ्रता न हो तो प्रतिष्ठा के पश्चात तीसरे, पाँचवें, सातवें आदि विषम संख्या वाले दिन में कंकण खोलने की क्रिया करनी चाहिए। जिस दिन चन्द्रबल हो उस दिन स्नात्रकार अथवा विधिकार स्वयं के हाथ का कंकण डोरा तीन नवकार मन्त्र गिनकर भी खोल सकते हैं किन्तु जिनबिम्बों के हाथ से यह डोरा विधिवत खोला जाना चाहिए।
आजकल के कुछ विधिकारक दीक्षा कल्याणक की उजवणी के प्रसंग पर सभी प्रतिमाओं के कंकण डोरे खोल देते हैं जो अनुचित है। क्योंकि जिस कार्य के प्रयोजन से कंकण बांधा जाता है उस कार्य के पूर्ण होने के बाद ही यह खोलना चाहिए।
शंका- गह मन्दिर में मल्लिनाथ, नेमिनाथ और महावीर स्वामी इन तीन तीर्थंकरों के बिम्बों की प्रतिष्ठा करवाने का निषेध क्यों?
समाधान- यह परिपाटी शास्त्रोक्त नहीं है, किन्तु सर्वप्रथम खरतरगच्छ के किसी आचार्य ने गृह चैत्य में अमुक प्रतिमाओं की स्थापना का निषेध किया
और प्रवृत्ति रूढ़ हो गई। तदनन्तर 17वीं-18वीं शती में उपाध्याय सकलचन्द्रजी ने भी स्वयं के प्रतिष्ठाकल्प में उस गाथा का उद्धरण दिया है इससे पूर्वमत का पूर्ण समर्थन हो जाने के कारण आज भी इन प्रतिमाओं को गृह चैत्य में पूजने का निषेध किया जाता है। वस्तुतः गृह मन्दिर में इन प्रतिमाओं की पूजा करने में सन्देह रखना अनुचित है।
शंका- वर्तमान में कितने ही स्थानों पर प्रतिष्ठा मंडप अथवा उसके निकटवर्ती भाग में कई घटना चित्र दिखाये जाते हैं उनमें भयंकर उपसर्ग, पशुओं का क्रन्दन, शिकार आदि से सम्बन्धित चित्र भी होते हैं। प्रतिष्ठा के मंगल प्रसंग पर इस तरह की झाकियाँ दिखाना उचित है?
समाधान- जहाँ केवल मानसिक उत्साह और मंगलमय वातावरण होना चाहिए ऐसे शुभ प्रसंगों पर पूर्वसूचित चित्र नहीं दिखाने चाहिए, क्योंकि उपसर्ग आदि की घटनाएँ देखने से मन में खेद और दुःखानुभूति की स्थिति उत्पन्न हो