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________________ 482... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन गौरवपूर्ण इतिहास का सम्मान बनाये रखने के लिए महापुरुषों के बलिदान एवं शासन कार्यों का स्मरण करवाती है और तयोग्य बनने हेत् प्रेरित करती है। ध्वजदंड और ध्वजा कैसी हो?- प्रतिष्ठा कल्पों में ध्वज दंड कैसा हो, ध्वजा किस माप की हो, ध्वजा का निर्माण कैसे किया जाए आदि के बारे में विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है। कल्याणकलिका के अनुसार दण्ड भीतर से पोला या खाली और सड़ा हुआ नहीं होना चाहिए। वह मजबूत, सीधा, निर्दोष, विषम पर्वो वाला, समगांठ वाला, बांस या काष्ठ का होना चाहिए। प्रासाद मण्डन में इसी स्वरूप का समर्थन करते हुए कहा गया है कि ध्वजदंड सुन्दर, गोलाकार, पीतवर्णी, गाँठ रहित और ग्रन्थियों की सम संख्या वाला होना चाहिए। वर्तमान में प्रचलित ध्वजदंड का भीतरी भाग प्राय: लकड़ी का होता है और उसके ऊपर में पीतल या ताँबा आवेष्टित किया जाता है अथवा मात्र पीतल या तांबे का ध्वजदंड भी बनाते हैं। प्रश्न होता है कि ध्वजा रेशमी वस्त्र की होनी चाहिए या सूती? कल्याणकलिका में इस सन्दर्भ का निरूपण करते हुए लिखा है कि शिखाः पंच प्रकर्त्तव्या, ध्वजाये तद्विचक्षणैः । दिव्य वस्त्र मय्यश्चैव, किंकिणी धुंघरान्विता ।। ध्वजा के अग्रभाग में तीन अथवा पाँच शिखाएँ बनाकर उसे सुशोभित करना चाहिए तथा ध्वजा उत्तम रेशमी वस्त्र की एवं चारों ओर से धुंघरू आदि द्वारा अलंकृत होनी चाहिए। वर्तमान में इसी तरह की ध्वजा प्रचलित है। परम्परागत रूप से अरिहंत एवं सिद्ध परमात्मा के वर्ण के अनुसार ध्वजा श्वेत और लाल रेशमी वस्त्र से बनी हुई होती है। वर्तमान में कहीं-कहीं पर ध्वजा के आकार के बराबर तांबा या चांदी का पत्ता काटकर उसे ध्वजा के स्थान पर लगाने की प्रथा भी देखी जाती है। परन्तु उससे ध्वजा लहरा नहीं सकती है इसलिए वस्त्र की ध्वजा ही उत्तम मानी गई है। ध्वजा के ऊपर अष्टमंगल के चिह्न, प्रतिष्ठा मंत्र, लोक की आकृति आदि का आलेखन किया जाता है जिससे सकल संघ में मंगल भावों की स्थापना होती है। ध्वजा नगर की संस्कृति का परिचय देती है और मानव मात्र को सुसंस्कारों की ओर प्रेरित करती है। इस पर लटकी मालाएँ, घंटी आदि सद्गुणों को अपनाने का संदेश देती हैं।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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