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प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ... 479
का स्थापित करना चाहिए। अथवा सभी प्रकार के जिनालयों में स्वर्ण कलश आरोपित करना शुभ माना गया है। सुवर्ण कलश को श्रेष्ठ एवं इच्छित फलदायक भी कहा गया है। 1
कलशारोहण कब किया जाए ? - प्राचीन परम्परा के अनुसार कलश की प्रतिष्ठा जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा मुहूर्त्त में सम्पन्न की जानी चाहिए। कभी-कभी आवश्यकतानुसार मन्दिर की वर्षगाँठ के दिन भी कलशारोहण कर लेते हैं। वर्तमान में दोनों परम्पराएँ प्रचलित हैं।
कल्याण कलिका के अनुसार यदि कलश प्रतिष्ठा बिम्ब प्रतिष्ठा के साथ हो तो अंजन विधान के समय ही कलश की अधिवासना कर देनी चाहिए। फिर प्रतिष्ठा के शुभ लग्न में अथवा अन्य शुभ लग्न में भी कलश स्थापित किया जा सकता है। इस प्रकार कलश की अंजन विधि होने के पश्चात उसकी स्थापना कभी भी कर सकते हैं।
कलशारोहण कहाँ-कहाँ किए जांए ? - मुख्य कलश मन्दिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है। परन्तु जहाँ मन्दिर में सभा मंडप के ऊपर गुम्बज आदि बनाये जाते हैं या अन्य छोटी-छोटी देहरियाँ निर्मित की जाती हैं। इसी के साथ बड़े-बड़े मंदिरों में शृंगार चौकी आदि पर भी कलश चढ़ाए जाते हैं। मूल गंभारे के शिखर पर चढ़ने वाला कलश मुख्य माना जाता है। वहाँ कलश अन्यत्र भी चढ़ाए जाते हैं।
कलशारोहण कौन करें ? - प्राचीन एवं वर्तमान परम्परा के अनुसार चढ़ावा लेने वाला गुण सम्पन्न परिवार, अनुभवी शिल्पकार (कारीगर) आचार्य अथवा योग्य विधिकारक मिलकर कलशारोहण करते हैं तथा अन्य समस्त श्रावकगण आनंदित होकर अपार हर्ष के साथ उसके साक्षी बनते हैं।
कलशारोहण करते समय क्या भावना करें? - कलशारोहण पूर्णता का सूचक होने से इस विधि को अत्यन्त उल्लास, उमंग एवं हर्ष के साथ सम्पन्न करना चाहिए। उस समय समस्त श्रीसंघ एवं नगरजनों के उत्कर्ष की भावना करते हुए सभी के मंगल की कामना करनी चाहिए। जिस प्रकार कलशारोहण करके जिनालय सम्बन्धी कार्यों को पूर्णता प्रदान की गई, उसी तरह यह क्रिया अनादि की भव भ्रमणा को समाप्त करते हुए हमें आत्मस्वरूप की पूर्णता प्रदान करें, ऐसी शुभ प्रार्थनाएँ करनी चाहिए।