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प्रतिष्ठा सम्बन्धी मुख्य विधियों का बहुपक्षीय अध्ययन ...477
जवारारोपण की मूल्यवत्ता - जौ आदि का वपन करते समय जैसे बीज क्रमशः विकास पाता है वैसे ही जन जीवन में निरन्तर सुसंस्कारों का सिंचन होता रहे ऐसी मनोभावना करनी चाहिए।
जवारारोपण के सन्दर्भ में आम मान्यता यह है कि जौ आदि धान्य जितने परिमाण में बढ़ते हैं उतनी ही सुखशांति और समृद्धि का विकास सम्पूर्ण नगर में होता है।
उपर्युक्त वर्णन के आधार पर यह प्रश्न हो सकता है कि प्रचलित परम्परानुसार तो सप्तधान्य का रोपण करते हैं फिर जौ के नाम की प्रधानता क्यों और अधिक मात्रा में इस धान्य का ही वपन क्यों ? इसका कारण यह है कि प्राकृतिक गुण के अनुसार जौ जितनी शीघ्रता से उगता, बढ़ता और विकसित होता है उतनी तीव्रता से अन्य धान्य नहीं। फिर मंगल अनुष्ठान नियत समय के लिए होते हैं अत: उनके सफलता की परख के लिए जवारों की वृद्धि को आधार माना गया है और इसीलिए जौ धान्य को प्रमुखता दी गई है।
इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि शीतकाल में जौ आदि का वपन उत्सव प्रारम्भ होने से पूर्व ही कर दें तो अधिक अच्छा है, क्योंकि उस समय फसल देरी से होती है अतः उचित समय वपन किया जाए तो उसका परिणाम देखा जा सकता है।
यहाँ यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि जिस कार्य के निमित्त से जवारारोपण किया जा रहा है उस प्रतिष्ठादि के लग्न से पहले का दूसरा, छठा अथवा नौवाँ लग्न नहीं होना चाहिए। क्योंकि इन लग्न दिनों में शुभ कार्य के उद्देश्य से जौ वपन, मंडप और वेदी आदि के प्रारम्भ करने का निषेध किया गया है।
कलशारोहण विधि का पारमार्थिक स्वरूप
कलश जिनचैत्य का शीर्षस्थ सर्वश्रेष्ठ प्रधान अंग है। कलशारोहण का सामान्य अर्थ है जिनालय के शिखर पर कलश की स्थापना करना या चढ़ाना। इस शब्द में कलश + आरोहण ऐसे दो पदों का संयोग है। आरोहण का अर्थ होता है ऊपर चढ़ना, चढ़ाना या आरोपित करना । अतः कलशारोहण या कलशारोपण से यहाँ तात्पर्य मंगल सूचक कलश को मंदिर के शिखर पर चढ़ाना या आरोपित करना है। इसीलिए इसे कलशारोपण भी कहते हैं। लोक