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________________ 466... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन 7. नागकेसर (नागचम्पा) - इस औषधि के प्रयोग से जिनालय के आस-पास का वातावरण निर्मल होता है। 8. लवंग (लौंग ) - भाव प्रकाश के अनुसार लौंग कड़वी, नेत्रों के लिए हितकारी, शीतल, रुचिकारक, तृषा एवं शूल आदि को दूर करने वाली वनस्पति है। इससे प्रतिमा की शीतलता एवं तेज आदि में वृद्धि होती है । 9. जातिफल (जायफल ) - जायफल कड़वा, तीक्ष्ण, गरम, हल्का तथा दुर्गंध, खांसी, वमन आदि को दूर करने में समर्थ है। इससे वातावरण की अशुद्धता का हरण होता है । 10. जातिपत्रिका (जायपत्ती ) - इस औषध के प्रयोग से भी प्रतिमा के तेज एवं कांति में वृद्धि होती है। 11. चन्दन - चंदन विश्वभर में अपनी सुगंध एवं श्रेष्ठता के लिए प्रसिद्ध है। यह मधुर, शीतल, मेघावर्धक, रक्तशोधक, हृदय हितकर, पीड़ानाशक तथा रक्त विकार, त्वचा विकार एवं मानसिक दुर्बलता को हरण करने में सक्षम है। इससे प्रतिमा का कान्तिवर्धन होता है और वातावरण सुरम्य बनता है। 12. सिल्हक (शिलारस ) - सिल्हक नाम की औषध कान्तिवर्धक, स्वादिष्ट, वीर्यवर्धक और सुगंधित होता है। इससे भूतबाधा, ज्वर, खुजली आदि के उपद्रवों का शमन किया जा सकता है। ग्यारहवाँ अभिषेक ग्यारहवाँ अभिषेक कुसुम स्नात्र कहलाता है। इस अभिषेक में पुष्प मिश्रित जल का प्रयोग करते हैं। पुष्प स्वभाव से ही कोमल, सुगंधित, आनंद प्रदायक, भावों को निर्मल करनेवाला एवं भावोल्लास को बढ़ाने वाला होता है। इससे प्रतिमा का आकर्षण गुण बढ़ता है तथा दर्शनार्थी को आन्तरिक आनंद एवं संतोष की प्राप्ति होती है। बारहवाँ अभिषेक इस अभिषेक को गन्ध स्नात्र कहते हैं। यह अभिषेक सिल्हक, कुष्ट, सुरमांसि, चंदन, अगुरु, कर्पूर आदि गन्धवर्ग की औषधियों के चूर्ण से किया जाता है। इनमें से कुछ औषधियों की चर्चा पूर्व में कर चुके हैं। शेष औषधियों के गुण इस प्रकार हैं 1. अगुरु (अगर ) - आयुर्वेद के मतानुसार यह औषध शीत प्रशामक,
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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