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460... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
6. नदी के दोनों तटों की मिट्टी चिकनी होने से शीतलता प्रदायक एवं विकार शोषक होती है। इसी तरह के गुण तालाब की मिट्टी में भी पाए जाते हैं।
इसके सिवाय मिट्टी की सुगंध आदि से वातावरण शद्धि एवं दर्शनार्थियों के भीतर शुभ भावों की उत्पत्ति होती है। पांचवाँ अभिषेक
जिनबिंब आदि का पांचवाँ अभिषेक पंचगव्य या पंचामृत के द्वारा किया जाता है। भारत में पंचगव्य (दूध, दही, घी, गौमूत्र एवं गोबर) को पवित्र एवं उत्तम माना गया है। लोकव्यवहार में इसे अशुद्धिहारक, पवित्रता संचारक एवं मलशोधक कहा गया है। पंचगव्य में निम्न गुण भी पाये जाते हैं
1. दूध- दूध एक सुप्रसिद्ध पौष्टिक खाद्य पदार्थ है। यह मधुर स्निग्ध, पुष्टिकारक, कान्तिवर्धक, वीर्यजनक, शीतल, वात-पित्त नाशक, बुद्धिवर्धक, त्रिदोषनाशक, आयुवर्धक एवं उत्तम सुपथ्य गुणों से युक्त है। इसके संस्पर्श से जिन प्रतिमा आदि का तेज बढ़ता है तथा पत्थर की स्निग्धता बनी रहती है।
2. दही- आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार दही बलकारक, रुचिवर्धक, पवित्र, शीतल एवं अधिक गुणकारी है। इसके द्वारा मूर्ति की शीतलता एवं पवित्रता में वृद्धि होती है।
3. घी- गाय का घी बुद्धि, कान्ति और स्मरण शक्ति को बढ़ाता है। यह वीर्यवर्धक, मेघाजनक, वात-कफनाशक, श्रमनिवारक, अग्निदीपक, अमृततुल्य एवं आयुवर्धक होता है। इसके स्पर्शन से प्रतिमा की चमक एवं कान्ति बढ़ती है।
4. गोमूत्र- व्यवहार जगत में गोमूत्र को पवित्र, शुद्धिकारक, रोग विनाशक एवं कान्तिवर्धक माना गया है। इसमें विद्यमान विविध धातुओं से शारीरिक शक्तियों में वृद्धि होती है। इस तत्त्व में विद्यमान ताम्र, लौह, कैलशियम, फास्फोरस, अम्ल, लवण आदि के कारण यह अनेक रोगों में लाभदायी है। इसका प्रयोग नेत्र ज्योति को बढ़ाता है और अनेक रोगों का उपशमन करता है।
5. गोबर- यहाँ गोबर शब्द से तात्पर्य छाणे की राख से है। यह तत्त्व टी.वी., कैन्सर आदि कई घातक रोगों को शान्त करने में सक्षम है। पूर्व काल में घरों के आंगन को गोबर से लिपा जाता था, जो अपनी प्रकृति के अनुसार सर्दी में गरम और गरमी में ठण्डे रहते थे। यह एक उत्तम खाद रूप भी माना