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अठारह अभिषेकों का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन ... 451
• इन प्रयुक्त औषधियों एवं तीर्थजलों के प्रभाव से मेरे आभ्यन्तर एवं शारीरिक समस्त प्रकार के विकार दूर हो रहे हैं और मैं उत्तरोत्तर आत्म दिशाभिमुख हो रहा हूँ ऐसा संकल्प करें।
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हे करुणावत्सल ! आपके इस अभिषेक के माध्यम से अनेक जीवों ने अनन्त पुण्य का उपार्जन किया है तथा कईयों ने शिवसुख को प्राप्त किया है। मेरे जीवन में भी इस तरह का अवसर उपस्थित हो जिसके माध्यम से आपके समान परमात्मस्वरूप को प्राप्त कर सकूँ ।
अठारह अभिषेक के विषय में जन मान्यताएँ
समस्त परम्पराओं में अभिषेक के जल को पूजनीय, कष्ट निवारक एवं कान्तिवर्धक माना गया है। आचार्य अभयदेवसूरि आदि के कुष्टरोग निवारण की घटना इसी विषय में प्रसिद्ध है। आज भी शांति स्नात्र आदि का जल एवं कई तीर्थों के प्रक्षाल जल को प्रभावी मानकर घरों में रखा जाता है तथा आपत्ति के समय उसका प्रयोग करते हैं।
अभिषेक के प्रकार
जिनबिंब के ऊपर प्रासुक जल की धारा छोड़ते हुए उसे अभिसिंचित करना अभिषेक कहलाता है। पूर्वाचार्यों ने तीर्थंकरों के लिए चार प्रकार के अभिषेक का वर्णन किया है
1. जन्माभिषेक - तीर्थंकर के जन्म के समय में सौधर्म इन्द्रादि द्वारा मेरू पर्वत पर 1008 कलशों से अभिषेक किया जाता है वह जन्माभिषेक है।
2. राज्याभिषेक - तीर्थंकर प्रभु कुमारावस्था में राज्यसिंहासन का कार्यभार संभालते हैं उस समय राज्यतिलक के पूर्व अभिषेक किया जाता है वह राज्याभिषेक है।
3. दीक्षाभिषेक - तीर्थंकर प्रभु दीक्षा धारण करते हैं उसके पूर्व इन्द्रादि देवगण एवं कुटुम्बीगण के द्वारा उनका अभिषेक (स्नान) किया जाता है वह दीक्षाभिषेक है।
4. जिनाभिषेक- प्रतिष्ठा के पश्चात अथवा प्रतिष्ठा से पूर्व अठारह अभिषेक के दौरान भक्तजनों के द्वारा प्रतिदिन जिनबिंब का अभिषेक किया जाता है वह जिनाभिषेक है।