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________________ अठारह अभिषेकों का आधुनिक एवं मनोवैज्ञानिक अध्ययन ...449 यहाँ शंका हो सकती है कि तीर्थंकर प्रतिमा के अभिषेक में सचित्त जल आदि का प्रयोग होने से वह सावद्यकारी है, अत: यह क्रिया सर्वथा उपयुक्त नहीं है और इसकी सार्थकता भी क्या है? यह सत्य है कि जिनाभिषेक में सचित्त सामग्री प्रयुक्त होने के कारण वह एक सावध प्रक्रिया है जबकि जैन धर्म तो अहिंसा का प्रतिपादन करता है अत: यह सब क्रियाएँ परमात्मा के निमित्त नहीं होनी चाहिए। तदुपरान्त यदि इसके द्रव्य पक्ष को गौण कर भावात्मक पक्ष की ओर दृष्टिपात किया जाए तो इसमें द्रव्य रूप से जितने दोषों की संभावनाएँ बनती हैं। उससे कई गुणा अधिक परिणामों की शुद्धि से कर्म निर्जरा भी होती है। दूसरे पहलू से विचार किया जाए तो गृहस्थ के घर, व्यापार एवं परिवार से सम्बन्धित समस्त क्रियाएँ सावद्य एवं बंधनकारी हैं उसकी तुलना में अभिषेक क्रिया सावध होने के उपरान्त भी आत्मशुद्धि कारक है। तीसरे, इस निमित्त से स्नातकर्ता के द्रव्य का सदुपयोग होता है, सांसारिक झंझटों एवं वैभाविक परिणतियों से भी उतने समय के लिए निवृत्त हो जाता है तथा शुभ अध्यवसाय और हर्षोल्लास के कारण पुण्य कर्मों का बंध करता है। जैसे दाना चुगते हुए पक्षियों को शिकारी के पाश जाल से बचाने हेतु उड़ाया जाये तो वह क्रिया बाह्यतः अनुचित प्रतीत होती है किन्तु आशय शुद्धि के कारण बंधन कारक नहीं है, वैसे ही परमात्मा का अभिषेक सावध होने पर भी विशिष्ट निर्जरा का हेतु है अत: सर्वथा करने योग्य है। • अठारह अभिषेक का तीसरा हेतु यह कहा जाता है कि जिनालय में किसी भी प्रकार की छोटी-बड़ी आशातना हुई हो, जाने-अनजाने किसी दोष का सेवन कर लिया गया हो अथवा शरीर का मैल आदि निकालने के कारण वह स्थान अपवित्र हो गया हो तो अभिषेक में प्रयुक्त औषधियों के प्रभाव से समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं तथा संभावित उपद्रव भी दूर हो जाते हैं। • प्राकृतिक दृष्टि से प्रभु अभिषेक में मुख्यत: वनस्पतिजन्य पदार्थों का समावेश होता है जो स्वाभाविक रूप से पर्यावरण को प्रभावित एवं विकारों को दूर करती हैं। इसमें दूध, दही, घी आदि का भी प्रयोग किया जाता है जिन्हें भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से पवित्र माना गया है। इस प्रकार देवस्थान विकार मुक्त बनता है।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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