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424... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
चन्द्र मंत्र - ॐ चं चं चुरू - चुरू नमः चन्द्राय औषधीशाय सुधाकराय जगज्जीवनाय सर्वजीवितविश्वंभराय भगवन् श्री चन्द्र इह मूर्ती..... शेष पूर्ववत् । मंगल (भौम) मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं नमो मंगलाय भूमिपुत्राय वक्राय लोहितवर्णाय भगवन् मंगल इह मूर्ती.... शेष पूर्ववत् ।
बुध मंत्र - ॐ क्रौं प्रौं नमः श्री सौम्याय सोमपुत्राय प्रहर्षुलाय हरितवर्णाय भगवन् बुध इह मूर्ती...शेष पूर्ववत् ।
गुरू मंत्रॐ जीवजीव नमः श्री गुरवे सुरेन्द्रमंत्रिणे सोमाकराय सर्ववस्तुदाय सर्वं शिवंकराय भगवन् श्री बृहस्पते इह मूर्ती.... शेष पूर्ववत् । शुक्र मंत्र - ॐ श्रीं श्रीं नमः श्री शुक्राय काव्याय दैत्यगुरुवे संजीवनीविद्यागर्भाय भगवन् श्री शुक्र इह मूर्ती... शेष पूर्ववत् ।
शनि मंत्र - ॐ शं शं नमः शनैश्चराय पंगवे महाग्रहाय श्यामवर्णाय नील वासाय भगवन् श्री शनैश्चर इह मूर्ती.... शेष पूर्ववत् ।
राहु मंत्र - ॐ रं रं नमः श्री राहवे सिंहिकापुत्राय अतुलबलपराक्रमाय कृष्णवर्णाय भगवन् श्री राहो इह मूर्ती... शेष पूर्ववत् ।
केतु मंत्र - ॐ धूं धूं नमः श्री केतवे शिखाधराय उत्पातदाय राहु प्रतिच्छन्दाय भगवन् श्री केतो इह मूर्ती....... शेष पूर्ववत् 1 64
।। इति नवग्रह प्रतिष्ठा विधि ।।
क्षेत्रपाल प्रतिष्ठा विधि
जिनमंदिर की क्षेत्र सीमा को संरक्षित करने के उद्देश्य से क्षेत्रपाल की स्थापना करते हैं। जिनालयों में भोमियाजी, भैरूंजी, घंटाकर्ण महावीर, मणिभद्र आदि क्षेत्रपालों की मूर्तियाँ तद्स्थानीय क्षेत्र की सुरक्षा हेतु प्रतिष्ठित की जाती हैं। आचार दिनकर में क्षेत्रपाल आदि की प्रतिष्ठा विधि इस प्रकार कही गई है -
• सर्वप्रथम प्रतिष्ठा कराने वाला गृहस्थ गृहशान्ति हेतु शान्तिक एवं पौष्टिक कर्म करें। फिर बृहत्स्नात्र विधि से अरिहन्त परमात्मा की स्नात्र पूजा करें।
• फिर क्षेत्रपाल आदि की मूर्तियों को परमात्मा के चरणों में आगे स्थापित
करें।
जिनालय एवं घर देरासर की अपेक्षा क्षेत्रपाल की मूर्तियाँ दो प्रकार की होती हैं- 1. काया रूप एवं 2. लिंग रूप, किन्तु इन दोनों की प्रतिष्ठा विधि समान है।