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416... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
खण्डित प्रतिमा की पूजा एवं विसर्जन आज्ञा- दिक्पालों को प्रभु की आज्ञा सुनाकर, आचार्य पुनः अस्त्र मंत्र और मुद्रा से शरीर का रक्षा कवच बनायें। फिर उस निर्धारित भू-भाग (मंडप) में सभी जगह अर्घ जल का क्षेपण करते हुए विघ्न निवारण करें।
तदनन्तर खण्डित प्रतिमा की विपरीत क्रम से पूजा करें। फिर विसर्जन करने के लिए उस देव को अर्घ देकर प्रार्थना पूर्वक आज्ञा प्राप्त करें
भगवन्! बिंबमिदमशेषदोषावहमस्य चोद्धारे सति शान्तिः स्यादिति भगवतोक्तमतोऽस्य समुद्धाराय समुद्यतं मामा तिष्ठ एवं कुरु। ___ इस प्रकार विज्ञप्ति पूर्वक अनुमति प्राप्त कर श्रेष्ठ जाति के एक कलश में पवित्र जल भरें। फिर चन्दन, पुष्प एवं अक्षत से उस कलश की पूजा करें, फिर उसे नवकार मन्त्र द्वारा अभिमन्त्रित करें और मुद्रा दिखायें। उसके पश्चात पूजित कलश से खंडित प्रतिमाओं का अभिषेक करें।
तत्पश्चात खंडित बिम्ब को स्थानान्तरित करने के लिए मूल मन्त्र का एक हजार (10 माला) जाप करें और 108 सुवर्ण पुष्पों से उस बिम्ब की पूजा करें।
प्रतिमा उत्थापन एवं विसर्जन- उसके बाद खण्डित प्रतिमा के समीप उपस्थित होकर उसके शरीर में रहे हुए सत्त्व को निम्न श्लोक द्वारा सुनायें
प्रतिमारूपमास्थाय, येनादौ समधिष्ठिता।
स शीघ्रं प्रतिमां त्यक्त्वा , यातु स्थानं समीहितम् ।। फिर 'ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ-गच्छ'।
यह मंत्र बोलकर अर्घ प्रदान करते हुए उस देव तत्त्व का विसर्जन करें। उसके पश्चात सुवर्ण के ओजार को अभिमंत्रित कर उससे भग्न प्रतिमा को उत्थापित करें। फिर पाश युक्त सुवर्ण की डोरी से बांधकर हाथी आदि की सवारी में पधरावें। उसके बाद सकल संघ के साथ 'शान्ति र्भवतु' इस प्रकार बोलते हुए गाँव के बाहर आयें। यदि पाषाण की प्रतिमा हो तो अगाध जल में विसर्जित करें। यदि मिट्टी की या रत्नमयी हो और अग्नि आदि में जलाने से तेजहीन एवं स्थान च्युत हो गई हो तो उसे भी गहरे समुद्र में विसर्जित करें।
सुवर्ण आदि धातु की प्रतिमा खण्डित हो जाये तो उसकी त्रुटि को सुधारकर पुन: स्थापित कर सकते हैं।