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________________ 414... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन वज्रलेप करने से प्रतिमा अथवा देवालय आदि की स्थिति काफी अधिक यहाँ तक कि करोड़ों वर्ष भी बढ़ जाती है। इसलिए वज्रलेप की उपयोगिता सुसिद्ध है।56 ।। इति वज्रलेप विधि ।। प्रतिमा विसर्जन विधि पादलिप्ताचार्यकृत निर्वाणकलिका के अनुसार खण्डित, जीर्णशीर्ण, प्रमाणहीन, प्रमाणाधिक, टेढ़ी, विकृत आकार वाली, रौद्र स्वरूपी, पिशाच आदि से अधिष्ठित जिनबिम्ब को विसर्जित करने की विधि निम्नानुसार है सकलीकरण एवं दिक्पालों को बलि अर्पण- प्रतिमा विसर्जन के दिन प्रतिष्ठाचार्य प्रात:काल में अपनी आवश्यक क्रिया पूर्ण करके सकलीकरण करें। फिर खण्डित बिम्ब को स्थान्तरित करने की विधि सम्पन्न करने वाले आचार्य या गीतार्थ मुनि शान्ति निमित्त बलि अर्पण करते हुए दिक्पालों का इस प्रकार आह्वान करें- ॐ इन्द्राय प्रतिगृह्ण स्वाहा, ॐ अग्नये प्रतिगृह्ण स्वाहा, ॐ यमाय प्रतिगृहण स्वाहा, ॐ नैर्ऋतये प्रतिगृह्ण स्वाहा, ॐ वरुणाय प्रतिगृह्ण स्वाहा, ॐ वायवे प्रतिगृह्ण स्वाहा, ॐ कुबेराय प्रतिगृह्ण स्वाहा, ॐ ईशानाय प्रतिगृह्ण स्वाहा ॐ ब्रह्मणे प्रतिगृह्ण स्वाहा, ॐ नागाय प्रतिगृह्ण स्वाहा। यहाँ उक्त प्रकार से मन्त्रोच्चार करते हुए उस-उस दिशा में अनुक्रम से बलि (गेहूँ, चना आदि धान्य) क्षेपण करें। क्षेत्रपाल एवं प्रेत आदि बलि अर्पण- तदनन्तर वायव्य कोण में 'ॐ क्षा क्षेत्रपालाय स्वाहा' यह कहकर क्षेत्रपाल को बलि दें। फिर 'ॐ सर्वभूतेभ्यो वषट् स्वाहा' यह मन्त्र बोलकर भूत आदि को संतर्पण करें। फिर चैत्यवन्दन करें। शस्त्र युक्त दिक्पाल पूजा- उसके पश्चात पूर्व निर्धारित क्षेत्र में आकर ॐकार से आसन को पूजित करें। फिर उसके ऊपर बैठकर भूतशुद्धि एवं सकलीकरण करें। फिर अर्घपात्र की द्रव्य शुद्धि करके उस पर आचमन आदि करें। उसके बाद नित्य विधि पूर्वक अरिहन्त प्रभु की पूजा करें। फिर निम्न मन्त्रोच्चार करते हुए दस दिक्पालों की पूजा करें पूर्व दिशा में- ॐ इन्द्राय स्वाहा ॐ वज्राय स्वाहा। आग्नेय दिशा में- ॐ अग्नये स्वाहा ॐ शक्तये स्वाहा।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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