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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...399 आराधनार्थ कायोत्सर्ग एवं स्तुति करें। फिर जिनबिम्ब के दाहिने हाथ से महाध्वज को उतार दें।
इसी क्रम में पूर्ववत नन्द्यावर्त मण्डल आदि का विसर्जन करें, साधुओं को आहार आदि का दान दें और याचकों को संतुष्ट करें।
महाध्वज- बिम्ब के परिकर में जो शिखर होता है वहाँ से लेकर बाह्य भाग में जो ध्वजदण्ड स्थापित करते हैं वहाँ तक लम्बा ध्वजदण्डाश्लेषी महाध्वज होता है। इस महाध्वज को परमात्मा के बिम्ब के सम्मुख ले जाएं। वहाँ कुंकुम रस से ध्वजा पर माया बीज लिखें और उस पर कुंकुम के छीटें दें। ध्वज के किनारे पर पंचरत्न बांधे, आचार्य उसके ऊपर वासचूर्ण डालें। फिर महाध्वज को आरोपित करें।31
॥ इति ध्वजारोहण प्रतिष्ठा विधि ।
__ चैत्य प्रतिष्ठा विधि यहाँ चैत्य का अर्थ 'जिनप्रासाद' है। यदि चैत्य विधि पूर्वक प्रतिष्ठित हो तो ही प्रतिमा स्थापना योग्य होती है इसलिए चैत्य प्रतिष्ठा आवश्यक है। जिस प्रकार नाटक देखने का आनन्द थियेटर में आता है वैसे ही जिनप्रतिमा प्रतिष्ठित चैत्य में अधिक प्रभावी होती है। ___ इस प्रतिष्ठा में महाचैत्य, देवकुलिका, मण्डप, मण्डपिका, काष्ठ आदि की प्रतिष्ठा का अन्तर्भाव हो जाता है। आचार दिनकर एवं कल्याण कलिका के अनुसार चैत्य प्रतिष्ठा की विधि निम्न है
• चैत्य प्रतिष्ठा बिम्ब प्रतिष्ठा के लग्न में करें अथवा बिम्ब प्रतिष्ठा के बाद तुरन्त अथवा थोड़े दिन, मास या वर्ष के पश्चात भी कर सकते हैं, किन्तु श्रेष्ठ लग्न में करें। इस प्रसंग पर संघ आमंत्रण, वेदी रचना, नंद्यावर्त पूजन आदि यथाशक्ति करें।
आजकल प्राय: बिम्ब प्रतिष्ठा के साथ चैत्य प्रतिष्ठा कर लेते हैं। इससे वेदी रचना, नंद्यावर्त पूजन आदि कई कार्य ध्वज प्रतिष्ठा के निमित्त स्वयमेव हो जाते हैं अतएव आधुनिक युग में चैत्य प्रतिष्ठा के लिए यह विधि करें
• चैत्य की चारों दिशाओं में वेदिका बनाएं। फिर चैत्य के अन्दर की तरफ एवं बाहर की तरफ चौबीस तन्तु सूत्रों को लपेटकर शान्ति मंत्र के द्वारा उसकी रक्षा करें।