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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...387
4. ॐ नैऋत्ये स्वाहा 5. ॐ वरूणाय स्वाहा 6. ॐ वायवे स्वाहा 7. ॐ कुबेराय स्वाहा 8. ॐ ईशानाय स्वाहा।
तुलना- श्वेताम्बर मान्य निर्वाणकलिका, श्रीचन्द्रकल्प, विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर आदि प्रतिष्ठाकल्पों में नन्द्यावर्त आलेखन एवं पूजन विधि का स्पष्ट उल्लेख है, किन्तु वलय संख्या एवं मन्त्र नाम को लेकर क्वचित अन्तर देखा जाता है। निर्वाणकलिका में केवल नन्द्यावर्त पूजन के मन्त्र ही कहे गये हैं इसकी विधि का उल्लेख नहीं है।23
श्री चन्द्रसूरि के प्रतिष्ठाकल्प में आलेखन एवं पूजन की विधि संक्षेप में दी गई है।24 विधिमार्गप्रपा में पूर्व कल्पों का अनुसरण करते हुए नन्द्यावर्त लेखन
और पूजा की समुचित विधि बताई गई है। आचार दिनकर में यह विधि अत्यन्त विस्तार के साथ दी गई है। सकलचन्द्र प्रतिष्ठाकल्प में आचारदिनकर का अनुकरण करते हुए यह चर्चा संक्षेप में की गई है।
वलय की अपेक्षा प्रारम्भ के तीन ग्रन्थों में छह, आचार दिनकर में दस तथा सकलचन्द्र प्रतिष्ठाकल्प में आठ वलय का निर्देश है और तदनुसार ही पूजन विधि कही गई है। वलय संख्या में भेद होने से मन्त्र नामों एवं उनके क्रम में भी अन्तर है।
यह भेद वस्तुत: आचार्यों की अपनी परम्परा के कारण है इसलिए किसी भी प्रकार का नन्द्यावर्त आलेखन एवं पूजन करने में दोष नहीं है।
वलय संख्या की भिन्नता के आधार पर उसके मूल उद्देश्य में कोई परिवर्तन नहीं आता, क्योंकि कालक्रम में विधियों का बाह्य स्वरूप बदलता रहता है। यद्यपि प्राचीन विधि का सर्वाधिक महत्त्व होता है।
॥ इति नन्द्यावर्त आलेखन-पूजन विधि ।।
यन्त्र निर्माण, स्थापना एवं पूजन विधि भारतीय संस्कृति में यंत्र-मंत्र का सदा काल से प्राधान्य रहा है। बीजाक्षरों का नियमित स्मरण या जप मंत्र कहलाता है तथा बीजाक्षरों का एक निश्चित रीति से आलेखन करना यंत्र कहा जाता है। मंत्रों की अपेक्षा यंत्र अधिक प्रभावी होता है। मंत्र बीजों को सिद्ध करके यंत्रों का निर्माण किया जाता है। जैन धर्म में भी यंत्र का बड़ा महत्त्व है। प्रतिष्ठा के दिन गर्भगृह में जिन प्रतिमा की वेदिका के नीचे यंत्र रखा जाता है।