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344... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन भी उल्लेख है।17 अत: विधिमार्गप्रपाकार का मत अधिक उचित प्रतीत होता है।
यहाँ उल्लेखनीय है कि ध्वजदंड अथवा कलश का अभिषेक प्रारम्भ करने से पूर्व जिनबिम्ब अभिषेक विधि के समान स्नात्रकारों की उपस्थिति, औषधि चूर्ण का घटन, भूतबलि प्रक्षेपण, आचार्य एवं स्नात्रकारों का सकलीकरण, शुचिविद्या आरोपण, आचार्य या गुरु के द्वारा श्री संघ के साथ देववन्दन एवं शान्तिनाथ, श्रुत देवता, क्षेत्र देवता, शासन देवता, समस्त वैयावृत्यकर देवता के कायोत्सर्ग
और स्तुति दान, पुष्पांजलि क्षेपण, तर्जनी मुद्रा दर्शन, जलाच्छोटन, मुद्गर मुद्रा दर्शन, सप्त धान्य प्रक्षेपण तथा कलशादि का अभिमन्त्रण इत्यादि विधान अवश्य करने चाहिए। उसके बाद मूल विधि शुरू करें। ___ 1. सुवर्ण स्नात्र- सुवर्ण चूर्ण को जल में डालकर उसके चार कलश भरें। फिर 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र कहकर 27 डंका पूर्वक दण्ड या कलश का अभिषेक करें। फिर तिलक पूजा, पुष्प पूजा और धूप पूजा करें।
सुपवित्र तीर्थनीरेण, संयुतं गंध पुष्प संमिश्रम् ।
पततु जलं दण्डोपरि, सहिरण्यं मंत्रपरिपूतम् ।। मंत्र- ॐ हाँ ही परमार्हते स्वर्ण संयुत जलेन स्नापयामीति स्वाहा।
• ध्वजदंड अथवा कलश के प्रत्येक अभिषेक में तत्सम्बन्धी औषधियों से कलश भरना, नमोऽर्हत् बोलना, 27 डंका बजवाना, स्नात्र करना एवं तिलक आदि से पूजन करना इतनी विधि समान है। __पुनरावृत्ति से बचने हेतु इन क्रियाओं का बार-बार सूचन नहीं भी किया जा सकता है।
2. पंचरत्न स्नात्र- पंचरत्न के चूर्ण को जल में डालकर चार कलश भरें। फिर 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर अभिषेक करें
नानारत्नौघ युतं, सुगंधि पुष्पाधिवासितं नीरम् ।
पतताद्विचित्रवर्णं, मन्त्राढ्यं स्थापनादण्डे ।। ___ मन्त्र- ॐ हाँ ह्रीं परमार्हते पंचरत्नचूर्णसंयुत जलेन स्नापयामीति स्वाहा।
3. कषाय स्नात्र- कषाय छाल के चूर्ण को जल में मिश्रित कर उसके चार कलश भरें। फिर 'नमोऽर्हत्.' पूर्वक श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर अभिषेक करें।
प्लक्षाऽश्वत्थोदुम्बर-शिरीष, छल्ल्यादि कल्क संमिश्रम् । दंडे कषाय नीरं, पततादधिवासितं जैने ।।