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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ... 341
मन्त्र - ॐ ह्रीँ ह्रीँ परम- - अर्हते काश्मीरज शर्कराभ्यां स्नापयामीति
स्वाहा।
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तदनन्तर केसर - शक्कर युक्त जल से जिन बिम्बों का अभिषेक करें। फिर पूर्ववत तिलक, पुष्प एवं धूप से पूजा करें।
दर्पण आदि दर्शन की अवान्तर विधि
पन्द्रह अभिषेक होने के पश्चात जिन बिम्बों को दर्पण एवं शंख के दर्शन करवायें।
वर्तमान परम्परा में दर्पण के स्थान पर सूर्य और चन्द्र के दर्शन करवाते हैं। उसकी विधि निम्न हैं
चन्द्र दर्शन - चन्द्रमा की मूर्ति बनवाकर प्रतिमा के सामने रखें। यदि वैसा न हो तो चौदह स्वप्नों में से चन्द्र का स्वप्न प्रभु के आगे रखें। यदि वह भी उपलब्ध न हो तो विकल्पतः दर्पण रखें। फिर निम्न मंत्र बोलें
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ॐ ह्रीँ रत्नाङ्कसूर्याय सहस्रकिरणाय नमो नमः स्वाहा। तदनन्तर निम्न मंत्र कहकर सूर्य के दर्शन करवाएं
ॐ अर्हं सूर्योऽसि, दिनकरोऽसि सहस्रकिरणोऽसि, विभावसुरसि, तमोऽपहोऽसि प्रियङ्करोऽसि, शिवङ्करोऽसि, जगच्चक्षुरसि, सुरवेष्टितोऽसि, मुनिवेष्टितोऽसि विततविमानोऽसि, तेजोमयोऽसि, अरुणसारथिरसि, मार्तण्डोऽसि, द्वादशात्मासि, चक्रबान्धवोऽसि, नमस्ते भगवन्! प्रसीद अस्य कुलस्य ऋद्धिं कुरु कुरु, वृद्धिं कुरु कुरु, पुष्टिं कुरु कुरु, जयं कुरु कुरु, विजयं कुरु कुरु, भद्रं कुरु कुरु, प्रमोदं कुरु कुरु, सन्निहितो भव भव श्रीसूर्याय नमः ।
सूर्य दर्शन - जिनबिम्ब के सम्मुख पूर्ववत मूर्ति, स्वप्न अथवा दर्पण रखें। फिर गुरु भगवन्त निम्न मंत्र बोलकर वासचूर्ण डालें
फिर 27 डंका बजवायें और मंगल गीत गायें ।
16. षोड़श - तीर्थोदक स्नात्र - सोलहवाँ स्नात्र करने हेतु एक सौ आठ तीर्थों के जल को सम्मिश्रित कर उन्हें पृथक्-पृथक् कलशों में भरें।
फिर स्नात्रकार जिनबिम्ब के निकट खड़े रहें तथा गुरु भगवन्त या विधिकारक ‘नमोऽर्हत्.' पूर्वक निम्न श्लोक एवं मन्त्र पढ़कर 27 डंका बजवायें। जलधिनदीहृदकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्धयर्थम् ।।