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प्रतिष्ठा उपयोगी विधियों का प्रचलित स्वरूप ...291 • तत्पश्चात कुंभ के आगे धूप रखें, उसे कुसुमांजलि से बधायें, कंकु के छीटें डालें। फिर कुंभ के भीतर चावल, सुपारी, रुपया और पंचरत्न की पोटली रखें।
• उसके पश्चात खड़े होकर नवकार मन्त्र अथवा बड़ी शान्ति का पाठ बोलते हुए जलयात्रा पूर्वक लाये गये शुद्ध जल से कुंभ भरें।
यहाँ सौभाग्यवती स्त्री के हाथ से कुंभ भरवायें अथवा सौभाग्यवती के हाथ में कुंभ देकर अखण्ड धार से उसे भरें।
• तदनन्तर कुंभ के मुख पर चारों दिशाओं में एक-एक नागरवेल (पान) के पत्ते रखें, उसके ऊपर श्रीफल रखें, उसे सवा गज हरा या लाल रेशमी वस्त्र से ढकें। फिर उसे मीढल, मरोडफली एवं कंकण युक्त ग्रीवा सूत्र से बांधे। - • उसके बाद कुंभ के कण्ठ में पुष्पमाला पहनायें, वस्त्र के ऊपर केसर या चंदन लगाकर सोना-चाँदी का बरख लगायें।
• उसके बाद सधवा स्त्री के मस्तक पर इंढाणी सहित उस कुंभ को रखें और उसके द्वारा भगवान की तीन प्रदक्षिणा दिलवायें।
• तदनन्तर पूर्व में जहाँ स्वस्तिक बनवाया गया था वहाँ 'ॐ ह्रीं ठःठः स्वाहा' इस मंत्र को सात बार कहकर श्वास रोकते हुए कुंभ की स्थापना करें।
• फिर गुरु महाराज का योग हो तो उनके हाथ से कुंभ के ऊपर वासचूर्ण डलवाएं। यदि गुरु न हों तो विधिकारक एवं श्रावक वासचूर्ण डालें। • उसके बाद दोनों हाथों में कुसुमांजलि लेकर निम्न काव्य बोलें
पूर्णं येन सुमेरू श्रृंगसदृशं, चैत्यं सुदेदीप्यते यः कीर्तिं यजमानधर्मकथन, प्रस्फूर्जितां भाषते । यः स्पर्धा कुरुते जगत्त्रयमहा, दीपेन दोषारिणा
सोऽयं मंगल रूप मुख्य गणनः, कुम्भश्चिरं नन्दतात् ।। · यह काव्य बोलकर कुंभ को बधायें।
• फिर कुंभ के आगे पट्टा रखकर सधवा स्त्रियों के द्वारा अक्षत की गहुंली करवायें। उसके ऊपर फल एवं नैवेद्य रखवायें। जवारारोपण किया हुआ हो तो उसमें से चार सकोरे कुंभ के चारों ओर रखें। यदि जवारारोपण न हो तो सकोरे बाद में रखें।
• फिर कुंभ के आगे प्रतिदिन गहुंली करवायें, स्त्रियों के द्वारा मंगल गीत गवायें, कुंभ के समीप बिल्ली आदि को आने-जाने नहीं दे, वहाँ रजस्वला आदि स्त्रियों की दृष्टि भी पड़ने न दें।