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284... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
ईशान कोण के लिए -
8. ॐ ईशानस्तु महादीप्तः, सर्वयोगाधिपो महान् । स्तस्मै नित्यं नमो नमः ।।
शूलहस्तो वृषारूढ़ अधोदिशा के लिए
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9. ॐ धरणस्तु महादीप्तः, सर्वसर्पाधिपो महान् । पद्मारूढो नागहस्त- स्तस्मै नित्यं नमो नमः ।।
शिलाओं की स्थापना विधि
चतुः शिला स्थापना
चार शिलाओं की स्थापना करनी हो तो उसकी विधि निम्न है - 1. नन्दा शिला - (1) ‘ॐ आधार शिले! सुप्रतिष्ठिता भव' यह मन्त्र बोलकर आग्नेय कोण के खड्डे में उपशिला की स्थापना करें। (2) 'ॐ पद्म! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ पद्म निधये नमः' यह मन्त्र पढ़कर उपशिला के ऊपर ‘पद्म' नामक निधि कलश की स्थापना करें। उसके बाद (3) ॐ नन्दे ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ नन्दायै नमः ' यह मन्त्र पढ़कर निधि कलश के ऊपर नन्दा शिला की स्थापना करें। फिर उसके ऊपर वासचूर्ण डालें, सुगंधित द्रव्यों का छिड़काव करें और निम्न श्लोक कहते हुए प्रार्थना करें -
वीर्येणादिवराहस्य, वेदार्यैस्त्वभिमंत्रिताम् । वसिष्ठ नन्दिनीं नन्दां, प्राक् प्रतिष्ठापयाम्हम् ।।
सुमुहूर्ते सुदिवसे, सा त्वंनन्दे ! निवेशिता । आयुः कारयितुर्दीर्घं, श्रियां चाग्रयामिहाऽऽनय ।।
2. भद्रा शिला - इस शिला की स्थापना करते समय (1) ॐ आधार शिले! सुप्रतिष्ठिता भव' (2) ॐ महापद्म ! इहाऽऽगच्छ, इह तिष्ठ, ॐ महापद्म निधये नमः' (3) ॐ भद्रे! इहागच्छ, इहतिष्ठ, ॐ भद्रायै नमः' इन मन्त्रों को पढ़ते हुए नन्दा शिला की भाँति नैऋत्य कोण में उपशिला, ‘महापद्म' नामक निधि कलश और भद्रा शिला को स्थापित करें। फिर पूर्ववत वासक्षेप आदि करके निम्न श्लोक से प्रार्थना करें
भद्राऽसि सर्वतो भद्रा, भद्रे ! भद्रं विधियताम् । कश्यपस्य प्रिय सुते !
श्रीरस्तु
गृहमेधिनः ।।