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________________ पंच कल्याणकों का प्रासंगिक अन्वेषण ...229 प्राप्त सीलों/मुहरों पर भी तीर्थङ्कर कायोत्सर्ग मुद्रा में उत्कीर्ण हैं, अत: इनकी प्राचीनता निर्विवाद है। ऋषभदेव के बाद क्रमश: तेईस तीर्थङ्कर और हुए जिनमें अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर थे। ऋषभदेव के अतिरिक्त जैन धर्म के 20 तीर्थङ्कर प्रागैतिहासिक काल में हुए। तीर्थङ्कर नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर ऐतिहासिक पुरुष हैं। . देश काल की परिस्थितियाँ सदा एक-सी नहीं रहती। समय सदा ही परिवर्तनशील रहा है, उत्थान और पतन का क्रम भी निरन्तर रहा है। जगत की अन्याय प्रवृत्तियों के साथ धर्म भी इस क्रम से प्रभावित होता रहा है। कभी तो धर्म अपने पूर्ण प्रभाव और प्रबलता से युक्त रहता है, कभी ऐसा भी समय आता है जब धर्म का प्रभाव क्षीण होने लगता है, उसमें शिथिलता आ जाती है। यह सब देश काल की परिस्थितियों के अनुरूप होता रहता है। जब-जब धर्म का रूप धुंधलाता है, उसकी गति मंथर होती है, तब-तब कुछ ऐसे प्रखर-ऊर्जावान महापुरुष जन्म लेते हैं, जो धर्म परम्परा में आई मलिनता और विकृतियों का उन्मूलन कर धर्म के मूल स्वरूप को पुनः स्थापित करते हैं। ऐसे ही जगतोद्धारक, महान उन्नायक, महापुरुष तीर्थङ्कर कहलाते हैं। ये धर्म तीर्थ के प्रवर्तक होते हैं। तीर्थङ्कर जैन धर्म का एक परिभाषिक शब्द है, जिसका भाव है- धर्म तीर्थ को चलाने वाला अथवा धर्म तीर्थ का प्रवर्तक। तीर्थ का अर्थ है आगम और उस पर आधारित चतुर्विध संघ। जो आगम और चतुर्विध संघ का निर्माण करते हैं वे तीर्थङ्कर कहलाते हैं। तीर्थङ्कर शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है“तरन्ति संसारमहार्णवं येन तत् तीर्थम्' अर्थात जिसके द्वारा संसार सागर से पार होते हैं वह तीर्थ है। इसी तीर्थ के प्रवर्तक तीर्थङ्कर कहलाते हैं। तीर्थ शब्द का एक अर्थ घाट भी होता है। तीर्थङ्कर सभी जनों को संसार समुद्र से पार उतारने के लिये धर्म रूपी घाट का निर्माण करते हैं। तीर्थ का अर्थ पुल या सेतु भी होता है। कितनी ही बड़ी नदी क्यों न हो, सेत् द्वारा निर्बल से निर्बल व्यक्ति भी उसे सुगमता से पार कर सकता है। तीर्थङ्कर संसार रूपी सरिता को पार करने के लिए धर्म-शासन रूपी सेतु का निर्माण करते हैं। इस धर्म शासन के अनुष्ठान द्वारा आध्यात्मिक साधना कर जीवन को पवित्र और मुक्त बनाया जा सकता है। सारांश यह है कि तीर्थङ्करत्व के गौरव से वे महापुरुष मंडित होते हैं, जो समस्त विकारों पर विजय पाकर जिनत्व को उपलब्ध कर लेते हैं और कैवल्य प्राप्त कर
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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