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194... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन जिन प्रतिमाएँ किन लक्षणों से युक्त हो?
जिनेश्वर भगवान की प्रतिमा वीतराग स्वरूप से युक्त होने के कारण उसमें अनेकों शुभ लक्षण होते हैं। वह सौम्य, प्रफुल्लित, शान्त, वीतराग मुख मुद्रा वाली एवं श्रीवत्सयुक्त खड्गासन या पद्मासन में होनी चाहिए।
वह भार्या से रहित, आयुध आदि शस्त्रों से रहित, चित्तहर्षक, मूंछ-दाढ़ी के बाल से रहित तथा उसके नेत्र अर्ध उन्मीलित होने चाहिए।
तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ छत्र, चामर, भामंडल, अशोक वृक्ष, सिंहासन आदि अष्ट प्रातिहार्यों से युक्त होनी चाहिए। प्रतिमा के नीचे के भाग में नवग्रह हो। प्रतिमा के बायीं ओर यक्षिणी तथा दाहिनी ओर यक्ष होना चाहिए।
क्षेत्रपाल का स्थान पबासन के मध्य में हो। यक्ष – यक्षिणियों की प्रतिमा वाहन, आयुध, वस्त्र, अलंकार, श्रृंगार आदि से संयुक्त होनी चाहिए।
सिंहासन में भी दोनों ओर यक्ष-यक्षिणी, सिंहयुगल, गजयुगल, चंवरधारी देव, चक्रेश्वरी देवी अवश्य बनायें। जिन प्रतिमाएँ किस वर्ण में निर्मित हो? __अरिहंत प्रभु की प्रतिमाएँ श्वेत अथवा श्याम वर्ण में बनायी जाती है। चौबीस तीर्थंकरों के अपने-अपने वर्ण में भी उनकी प्रतिमाएँ स्थापित की जा सकती है। विशेष रूप से चौबीस तीर्थंकरों के जिनालय में उनकी प्रतिमाएँ अपने वर्ण के अनुसार ही स्थापित करनी चाहिए।
श्वेताम्बर के शिल्प रत्नाकर30 एवं दिगम्बर परम्परा के प्राचीन लघु चैत्यभक्ति31 में चौबीस तीर्थंकरों के वर्ण निम्नानुसार बताये गये हैं___ आठवें चन्द्रप्रभु एवं नौवें पुष्पदन्त श्वेतवर्णी, सातवें सुपार्श्वनाथ एवं तेईसवें पार्श्वनाथ नील वर्णी, छठे पद्मप्रभु एवं बारहवें वासुपूज्य रक्त वर्णी, बीसवें मुनिसुव्रत स्वामी एवं बाईसवें नेमिनाथ हरित वर्णी तथा पहले आदिनाथ, दूसरे अजितनाथ, तीसरे संभवनाथ, चौथें अभिनंदन, पाँचवें सुमतिनाथ, दसवें शीतलनाथ ग्यारहवें भेंयासनाथ, तेरहवें विमलनाथ, चौदहवें अनंतनाथ, पन्द्रहवें धर्मनाथ सोलहवें शांतिनाथ, सत्तरहवें कुन्थुनाथ, अठारहवें अरनाथ, उन्नीसवें मल्लिनाथ, इक्कीसवें नमिनाथ और चौबीसवें महावीर स्वामी कंचनवर्णी होते हैं। ये वर्ण शरीर की अपेक्षा से कहे गए हैं आत्मा तो अवर्णी है।