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184... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन अत्यावश्यक है। जिनबिम्ब निर्माण हेतु प्रयुक्त होने वाली शिला, निर्माणकर्ता शिल्पी, बिम्ब निर्माण प्रारंभ का मुहूर्त, दिशा आदि का प्रतिमा की प्रभावकता में विशेष स्थान होता है। इनके प्रति जितनी जागरूकता रखी जाएं बिम्ब उतना ही ओजस्वी, प्रभावी एवं स्थायी बनता है तथा भावों में उच्चता, विचारों में उदारता एवं संस्कारों में निर्मलता का निर्माण करता है। अत: शास्त्रोक्त विधि से जिनबिम्ब का निर्माण करना परमावश्यक है। सन्दर्भ-सूची 1. सुशीलश्चतुरो दक्षः, शास्त्रज्ञो लोभवर्जितः । क्षमावान स्याद् द्विजश्चैव, सूत्रधारः स उच्यते ॥
शिल्प रत्नाकर, 1/1 2. षोडशक प्रकरण, 7/3 3. जिनबिम्ब कारणविधिः काले, पूजा पुरस्सरं कर्तुः । विभवोचितमूल्याऽर्पणमनघस्य शुभेन भावेन ।
___ (क) षोडशक प्रकरण, 7/2
(ख) पंचाशक प्रकरण, 8/7 4. पुण्यं प्रासाद जं स्वामी, प्रार्थयेत् सूत्रधारतः। . सूत्रधारो वदेत् स्वामिन्! अक्षयं भवतात् तव ॥
इत्येवं विधिवद् कुर्यात्, सूत्र धारस्य पूजनम् ।
__ भू वित्त वस्त्रालंकारैः, गौ महिष्यश्च वाहनैः ॥ अन्येषां शिल्पिनां पूजा, कर्तव्या कर्मकारिणाम् । स्वाधिकारानुसारेण, वस्त्रैस्ताम्बूल भोजनैः ।
प्रासाद मंडन, 8/85, 82 83 5. पंचाशक प्रकरण, 8/8-9 6. वही, 8/10-11 7. षोडशक प्रकरण, 7/5 8. वही, 7/7 9. सूत्राष्टकं दृष्टि नृहस्तमौञ्ज ।
कार्पास स्यादवलम्बसंज्ञम् ॥