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182... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
यदि काष्ठ या पाषाण में कील, छिद्र, पोलापन, जीव के जाले, संधि, कीचड़ अथवा मंडलाकार यानी गोलाकार रेखा हो तो वह महादोषकारी माना गया है।
यदि काष्ठ आदि पर मधु जैसा मंडल हो तो भीतर में जुगनू जानें। इसी तरह भस्म जैसा मंडल हो तो रेत, गुड़ जैसा मंडल हो तो लाल मेंढ़क, आकाशी रंग का मंडल हो तो जल, कपोत वर्ण का मंडल हो तो छिपकली, मजीठ रंग का मंडल हो तो मेढ़क, लाल वर्ण का मंडल हो तो गिरगिट, पीले रंग का मंडल हो तो गोह, कपिल वर्ण का मंडल दिखे तो चूहा, काले वर्ण का मंडल दिखे तो सर्प तथा विचित्र वर्ण का मंडल देखने में आये तो बिच्छू समझना चाहिए।
इस प्रकार विभिन्न रंग के मंडल प्रकट होने पर भीतर अमुक प्राणी है' ऐसा ज्ञात कर लेना चाहिए और प्रतिमा निर्माण हेतु उस प्रकार के काष्ठ आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए। __यदि पत्थर या काष्ठ पर नंद्यावर्त्त, अश्व, श्रीवत्स, शंख, हाथी, गाय,
बैल, इन्द्र, सूर्य, चन्द्र, माला, ध्वजा, शिवलिंग, तोरण, हिरणी, कमल, वज्र, गरुड़ जैसी रेखा दिखती हो तो उसे शुभ लक्षण मानना चाहिए और वह प्रतिमा निर्माण के लिए श्रेष्ठ है। जिन प्रतिमा निर्माण विधि
जिनबिम्ब का निर्माण करवाने वाले को प्रतिमा देखकर जितने परिमाण में आनन्द-उल्लास आदि की अभिवृद्धि होती है उसे उतनी ही संख्या में बिम्ब भरवाने का सच्चा लाभ प्राप्त होता है क्योंकि परमार्थ से जैसे भाव होते हैं वैसा ही फल उपलब्ध होता है।12 __आचार्य हरिभद्रसूरि कहते हैं कि मूर्ति निर्माण का कार्य शुरू होने के पश्चात शिल्पी के चित्त में थोड़ी भी अप्रीति, दुर्भाव आदि पैदा होते हैं तो वह मूर्ति निर्माण का कार्य उस पर थोपा हुआ या जबर्दस्ती करवाया हुआ प्रतीत होता है इसलिए सर्व आपत्तियों का मूल कारण अप्रीति भाव कभी भी उत्पन्न न होने दें।13।
श्रावक को अधिक गुण वाली प्रतिमा का निर्माण करवाना हो तो न्यायोपार्जित धन का ही सद्व्यय करना चाहिए और स्वयं के भीतर में भी प्रभु के प्रति अनेक दोहद-भावनाओं को धारण करना चाहिए तथा वैसी भावनाएँ