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अध्याय-7
जिनबिम्ब निर्माण की शास्त्रविहित विधि
कोई व्यक्ति विशेष अथवा संघ विशेष जब मन्दिर निर्माण का निर्णय करता है तब सबसे पहले यह निर्धारण करना भी आवश्यक है कि कार्य किस सूत्रधार या शिल्पकार के निर्देशन में करवाया जाये। उसमें भी मुख्य रूप से जिनबिम्ब का निर्माण किसके द्वारा करवाया जाये।
शिल्पकार कैसा हो?
जिनमन्दिर एवं जिनबिम्ब का निर्माण सामान्य नहीं है इसलिए गुणसम्पन्न शिल्पी के हाथों में यह कार्य सुपुर्द करना चाहिए।
शिल्परत्नाकर के अनुसार जो सुशील हो, चतुर हो, कार्यकुशल हो, शिल्पशास्त्र का ज्ञाता हो, निर्लोभी हो, क्षमाशील हो और ब्राह्मण हो - इन विशेषताओं से युक्त व्यक्ति को योग्य शिल्पकार मानना चाहिए। 1
शिल्पकार के लिए यह आवश्यक है कि वह शिल्पशास्त्र की आधुनिक एवं प्राचीन शैलियों से सुपरिचित हो। साथ ही आधुनिक शैली के बेहतर साधनों को अपनाने में भी सिद्धहस्त हो ।
सूत्रधार को कार्यकुशल होना और भी जरूरी है। वह केवल वास्तु निर्माण की योजना ही नहीं बनाता अपितु उसे क्रियान्वित करके मन्दिर भी तैयार करता है। उसे लम्बे समय तक शिक्षित, अल्पशिक्षित अथवा अशिक्षित कार्यकर्ताओं एवं श्रमिकों से काम करवाना होता है। कारीगरों आदि की संख्या भी सामान्यतः काफी होती है। एक सुयोग्य सूत्रधार ही उनकी समुचित व्यवस्था कर सकता है। सूत्रधार प्रतिभावान होना चाहिए। उसकी कल्पना शक्ति और विशिष्ट प्रज्ञा ही यह निर्णय करती है कि मन्दिर किस शैली का, किस आकार का और किस प्रकार के कलात्मक चित्रों से युक्त होगा। सूत्रधार संजोयी कल्पना को यथावत प्रत्यक्ष रूप भी प्रदान करता है। उसे अपनी वास्तुकला से गहरा लगाव होता है। जिस तरह एक पिता अपने गुणों एवं विद्या आदि शक्तियों को पुत्र में आरोपित कर उसे स्वयं से भी श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करता है। उसी प्रकार प्रतिभासम्पन्न