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प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन ...xill जैनाचार्यों एवं ज्ञानपिपासु मुनिजनों से निवेदन हैं कि वे ऐसे सूक्ष्म एवं गंभीर विषयों के शास्त्रोक्त सत्य स्वरूप को जन सामान्य के समक्ष प्रस्तुत करें।
मैं साध्वीजी को धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने विषय की दुरुहता एवं परिश्रम की चिंता किए बिना डी.लिट में ऐसे विषयों का समावेश किया जिन पर वह चाहती तो अलग-अलग डी.लिट कर सकती थी। श्रुत सरिता ऐसे ही साधुसाध्वियों के कारण निराबाध प्रवाहित है। श्रुत देवी से यही प्रार्थना है कि सौम्यगुणाजी पर इसी प्रकार अपनी अनवरत कृपा बनाए रखें तथा जिनशासन के साम्राज्य को विस्तृत एवं अमर बनाएं।
डॉ. सागरमल जैन प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर