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________________ x... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन आयोजित होने वाला कोई भी कार्यक्रम या अनुष्ठान हो आपकी उपस्थिति एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में वहाँ अवश्य रहती है। दुबली-पतली देह में भी आपकी फुर्ती एवं सक्रियता युवाओं को भी लज्जित कर देती है। इसी कारण खरतरगच्छ जैन संघ में आप एक अनुभवी एवं कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में सुप्रसिद्ध हैं। पूज्य गुरुवर्याश्री से आपका जुड़ाव कई वर्षों से रहा है। साध्वी सौम्यगुणा श्रीजी को शोध कार्य एवं श्रुतसेवा के लिए आप हमेशा उत्साहित करते रहते हैं। शाजापुर में शोध कार्य प्रारम्भ हुआ तभी से धर्मनाथ जैन मंदिर के द्वारा पुस्तक प्रकाशन की भावना को आप सदा संस्था की तरफ से अभिव्यक्त करते रहे। आपकी इच्छा थी कि इस शोध कार्य में भी सबसे बड़े Volume का प्रकाशन धर्मनाथ ट्रस्ट के द्वारा हो। आपकी प्रेरणा एवं मंगल कामनाओं के मधुरिम सहयोग से आज 23 चरणों में सम्पन्न यह शोध कार्य पूर्णता पर है। संस्था की इच्छा के अनुरूप प्रतिष्ठा विधान के रहस्यमयी तथ्यों को उजागर करने वाला यह शोध भाग (खण्ड 14वाँ) धर्मनाथ जैन ट्रस्ट के ज्ञानखाते से प्रकाशित हो रहा है। सज्जनमणि ग्रंथमाला आप जैसे श्रावक रत्नों से सुशोभित ट्रस्ट का हार्दिक आभारी है। ट्रस्ट के समस्त अधिकारी एवं कार्यकर्तागण अपनी सेवाओं के लिए अनुमोदना के पात्र हैं। इस श्रुत प्रकाशन में शांतिलालजी गुलेच्छा मुख्य रूप से माध्यम बने एवं उनसे परिचित होने के कारण ट्रस्ट के प्रतिनिधि के रूप में उन्हीं का उल्लेख कर पाए हैं। आपका ट्रस्ट अपनी समस्त कल्पनाओं को साकार रूप देते हुए जैन समाज के उत्थान में इसी भाँति गतिशील रहे, यही मंगल भावना करते हैं।
SR No.006251
Book TitlePratishtha Vidhi Ka Maulik Vivechan Adhunik Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages752
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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