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अध्याय-4
जिनालय आदि का मनोवैज्ञानिक एवं
प्रासंगिक स्वरूप
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मानव मन की चंचलता लोक प्रसिद्ध है। चंचल मन को स्थिर करने के लिए आलम्बन नितांत आवश्यक है। विविध धर्म एवं संप्रदाय के धर्माचार्यों ने इस सत्य को जाना एवं अनुभव किया। इसीलिए मन्दिर, मस्जिद, चर्च, ध्यान केन्द्र जैसे अध्यात्म स्थलों का निर्माण प्रत्येक संस्कृति में आज भी जीवंत है। इसी सच्चाई को ध्यान में रखकर इस अध्याय में मन्दिर सम्बन्धी कई ऐसे पक्षों को उजागर किया जा रहा है जिसका सम्बन्ध मनुष्य के मन से है। इन क्रियाओं में यदि व्यक्ति का मानसिक जुड़ाव हो जाए तो वह श्रेष्ठ मनोदशा को प्राप्त कर वीतराग मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। प्रतिष्ठा एक मंगल अनुष्ठान कैसे? ___ वीतराग जैसे आराध्य देवों को प्रतिमा के रूप में स्थापित करना एक शुभ क्रिया है। प्रत्येक शभ क्रिया मांगलिक रूप से सम्पन्न की जानी चाहिए। जैन धर्म में अरिहंत परमात्मा और गुरु को वन्दन करना तथा उनका स्मरण करना, इसे उत्कृष्ट मंगल माना गया है। प्रतिष्ठा में देव तत्त्व एवं गुरु तत्त्व दोनों का समावेश होता है। .. लोक व्यवहार में देखते हैं कि किसी भी अच्छे कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व शुभ या मंगल के रूप में कुछ विधान अथवा शुभ शकुन के रूप में किसी का दर्शन आदि किया जाता है जिससे कार्य निर्विघ्न सम्पन्न हो सके।
कुछ लोग इसे श्रद्धा का विषय मानते हैं तो कई अंधविश्वास। कुछ जनों का मत है कि यह एक सहायक तत्त्व के रूप में कार्य करता है तो कई मानते हैं कि यह पुरुषार्थ में कमी लाता है। आखिर वस्तु स्थिति क्या है? इसे दर्शाने वाले कुछ तथ्य निम्नोक्त हैं