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प्रतिष्ठा सम्बन्धी आवश्यक पक्षों का मूल्यपरक विश्लेषण ...51 की भक्ति, ऊँची आवाज, तीक्ष्ण नजर, सबसे प्रेम, जोड़ने में कुशलता इत्यादि आवश्यक गुण होने चाहिए।
प्रतिष्ठा जिनशासन का एक महत्त्वपूर्ण विधान है। इसमें सम्पन्न किए जाने वाले विधि-विधान अपने आप में विशिष्ट एवं मौलिक हैं। उन क्रिया-विधानों के छोटे-छोटे पक्षों को जानना एवं समझना नितांत जरूरी है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर इस अध्याय में कुछ सार्वजनिक विषयों को अधिक स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। इस अध्याय के द्वारा जनमानस में रही भ्रान्त मान्यताएँ समाप्त हो सके एवं आवश्यक तथ्यों का ज्ञान हो सकें यही अन्तर प्रयास। सन्दर्भ-सूची 1. निष्पन्नस्यैवं खलु, जिनबिम्बस्योदिता प्रतिष्ठाऽऽशु । दशदिवसाभ्यन्तरतः, सा च त्रिविधा समासेन ॥
षोडशकप्रकरण, 8/1 2. वही, 8/1 3. वही, भा. 1, पृ. 181, 162 4. पंचाशकप्रकरण, 8/17 5. कल्याणकलिका, भा.2, पृ. 48 6. वही, भा. 2, पृ. 47 7. (क) निर्वाणकलिका, पृ. 24.
(ख) कल्याणकलिका, भा. 2, पृ. 20 8. निर्वाणकलिका, पृ. 63 9. प्रतिष्ठा पाठ, श्लोक 228-229 10. निर्वाणकलिका, पृ. 12-1 11. कल्याणकलिका, पृ. 208-209 12. आचारदिनकर, पृ. 141 13. वही, पृ. 141-142 14. प्रासाद मंडन, 1/36 15. वही, 1/37 16. जिणमुद्द' कलस' परमेट्ठि',
अंग- अंजलि' तहासणा चक्का' ।