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36... प्रतिष्ठा विधि का मौलिक विवेचन
वेदिका रचना आवश्यक क्यों? प्रतिष्ठा मंडप में वेदिका का निर्माण नूतन प्रतिमाओं को उच्च आसन प्रदान करने एवं उनकी श्रेष्ठता को दर्शाने के प्रयोजन से किया जाता है।
दूसरा हेतु यह माना जा सकता है कि प्रतिमाओं को मूल गादी पर विराजमान करने से पूर्व उनके ऊपर कुछ विधि-विधान किये जाते हैं। एतदर्थ वेदिका के रूप में एक निश्चित स्थान तैयार कर लेने पर प्रतिदिन के अनुष्ठान व्यवस्थित सम्पन्न हो सकते हैं। प्रतिमाओं को वेदी पर विराजमान करने से दूर से भी दर्शन किए जा सकते हैं। वेदिका के माध्यम से नूतन बिम्बों के सभी कार्य एक स्थान पर सम्पन्न होने से प्रतिमाएँ अधिक प्रभावी बनती हैं। यदि प्रतिमाएँ अधिक संख्या में हों और अधिवासना आदि के लिए पुनः पुन: स्थान परिवर्तन करना पड़े तो उनके नीचे गिरने, खंडित होने एवं अस्त-व्यस्त होने आदि संबंधी आशातनाएँ हो सकती हैं। प्रतिमाओं को ऊँचे आसन पर विराजमान करना सम्मानजनक होने से सभी अनुष्ठान पूर्णत: फलदायी और सार्थक बनते हैं।
वेदिका निर्माण का एक हेतु यह भी है कि वेदिका पुरुष के नाभि प्रमाण से ऊपर होनी चाहिए, जिससे अभिषेक आदि करते समय स्नात्रकारों के अधोभाग का स्पर्श प्रतिमा से न हो। हर जगह प्रमाणोपेत चौकी या सिंहासन आदि उपलब्ध हो, यह जरूरी नहीं है अत: इस दृष्टि से भी वेदिका की उपयोगिता सिद्ध होती है।
एक अन्य कारण यह माना जा सकता है कि कदाचित प्रमाणोपेत चौकी या त्रिगड़ा आदि प्राप्त हो भी जाये तो उन पर एक या दो जिनबिम्ब ही रखे जा सकते हैं। दूसरा, प्रतिष्ठा सम्बन्धी क्रिया-विधियों को सम्पन्न करने के लिए अचल आसन चाहिए। सिंहासन आदि चल होते हैं किन्तु वेदिका अचल होती है इसलिए भी वेदिका की रचना आवश्यक है। हिन्दू परम्परा में भी मांगलिक कार्यों में वेदिका का उपयोग किया जाता है।
6. श्रीसंघ भक्ति- अंजनशलाका-प्रतिष्ठा के पुण्य प्रसंग पर साधर्मिक वात्सल्य करना भी प्रतिष्ठा महोत्सव का एक आवश्यक अंग है।
यदि एक व्यक्ति प्रतिष्ठा का आयोजन कर रहा हो तो उसे स्वयं की बाह्य शक्ति का विचार कर साधर्मी वात्सल्य अथवा नवकारसी की व्यवस्था करनी