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जिनपूजा का सैद्धान्तिक स्वरूप एवं उसके प्रकार... ...11
कहलाता है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार भक्तिपूर्वक अर्हन्तदेव की प्रतिमा और मन्दिर का निर्माण करना तथा दानपत्र लिखकर गाँव, क्षेत्र आदि का दान देना भी सदार्चन कहलाता है । अपनी शक्ति के अनुसार मुनियों को नित्यदान देते जो पूजा की जाती है वह नित्यमह कहलाती है।
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2. चतुर्मुख (सर्वतोभद्र ) पूजा - महामुकुट बद्ध राजाओं के द्वारा किया गया यज्ञ चतुर्मुख यज्ञ या सर्वतोभद्र पूजा कहलाता है ।
3. कल्पद्रुम पूजा - जो पूजा चक्रवर्तियों के द्वारा किमिच्छक दान देकर की जाती है तथा जिससे जगत के सर्व जीवों की आशा पूर्ण होती है वह कल्पद्रुम पूजा कहलाती है।
4. अष्टाह्निक पूजा - जगत में अत्यंत प्रसिद्ध सभी के द्वारा की जाने वाली पूजा अष्टाह्निक पूजा कहलाती है ।
इन चारों पूजाओं में पूजा के स्थान पर यज्ञ शब्द का प्रयोग किया गया है। किन्तु यहाँ यज्ञ का अर्थ प्रसंगोपेत पूजा ही लेना चाहिए।
यद्यपि वर्तमान में चतुर्विध प्रकारी पूजाओं का अनुपालन नहीं किया जाता है परन्तु ललित विस्तरा में वर्णित पूजा करना संभव है। प्रतिपत्ति पूजा का जघन्य पालन तो किया जा ही सकता है। साधुओं द्वारा इसका पालन अवश्य किया जाता है। अत: पूर्णतः इनका लोप हो गया है, ऐसा नहीं कह सकते। पंचविध प्रकारी पूजा
पाँच प्रकार की पूजाओं से युक्त पूजा को शास्त्रीय भाषा में पंचोपचारी पूजा कहा जाता है। सामान्यतया जो पूजा पाँच प्रकार के उपचारों से युक्त है वह पंचोपचारी पूजा है।
भगवती सूत्र में आगम प्रसिद्ध पाँच प्रकार के विनय स्थान से युक्त होकर पूजा करने को पंचोपचार पूजा कहा गया है। 46 यहाँ विनय स्थान से तात्पर्य पाँच प्रकार के अभिगम रूप आचार से है । पाँच अभिगम के नाम निम्न हैं- 1. सचित्त का त्याग, 2. अचित्त द्रव्य का अत्याग, 3. एक पट्ट का उत्तरासंग, 4. अंजलिबद्ध नमस्कार और 5. प्रणिधान (मन की एकाग्रता ) ।
चैत्यवंदन भाष्य एवं दर्शनशुद्धि प्रकरण में पूर्व वर्णित पंचोपचारी के पूजा साथ राजा आदि शासन अधिकारियों के द्वारा 1. छत्र, 2. वाण, 3. मुकुट, 4. खड्ग और 5. चामर इन पाँच राज चिह्नों के त्याग करने को भी पंचोपचारी