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10... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
मांस आदि पदार्थ तो श्रावक के लिए ही सर्वथा निषिद्ध है तो फिर वह परमात्मा के समक्ष यह सब पदार्थ कैसे चढ़ा सकता है ? अतः यहाँ पर मांस आदि को छोड़कर शेष साधनों से आमिष पूजा समझनी चाहिए। पूर्व वर्णित पुष्प, आहार एवं स्तोत्र पूजा में प्रतिपत्ति पूजा मिलाने पर चार प्रकार की पूजा निष्पन्न होती है। देशविरति श्रावक को इन चारो प्रकार की पूजा करनी चाहिए तथा सर्वविरति साधु स्तोत्र और प्रतिपत्ति पूजा कर सकते हैं।
इसमें मुख्य रूप से स्तोत्र पूजा एवं प्रतिपत्ति पूजा का महत्त्व रहा हुआ है। स्तोत्र पूजा - 1008 लक्षणों से युक्त भगवान के शरीर, उपसर्ग एवं परिषह जय के लिए प्रभु के आचरण, श्रद्धा, ज्ञान, विरति आदि परिणामों तथा केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि गुणों का वर्णन करने वाले गंभीर स्तोत्रों को प्रणिधान पूर्वक बोलना स्तोत्र पूजा है।
राग-द्वेष या मोह के कारण हुई गलतियों एवं दोषों का स्तुति आदि के माध्यम से परमात्मा के समक्ष आलोचन या प्रायश्चित्त करना भी एक प्रकार की स्तोत्र पूजा है। इन सभी को परमात्मा के समक्ष चित्त की एकाग्रता एवं अहोभाव पूर्वक बोलना चाहिए। 41
स्तोत्र पूजा विधि का वर्णन आचारांग सूत्र 12 एवं ललित विस्तरा 13 में प्राप्त
होता है।
प्रतिपत्ति पूजा - प्रतिपत्ति पूजा का अर्थ है आप्त पुरुष या सर्वज्ञ की आज्ञा का पालन। जिनाज्ञा का उत्कृष्ट पालन वीतराग अवस्था में ही होता है । उपशान्त मोह, क्षीणमोह एवं केवलज्ञानी या सयोगी केवली इन तीन प्रकार की आत्माओं को उत्कृष्ट प्रतिपत्ति पूजा इन गुणस्थानकों के साथ ही प्राप्त होती है क्योंकि उनमें वैराग्य, तत्त्वरुचि विरति, अनासक्ति, सर्वथा आत्मशुद्धि इत्यादि रूप सर्वज्ञ की आज्ञा पूर्ण रूप से आत्मसात हो चुकी है। इसी कारण वे उत्कृष्ट प्रतिपत्तिपूजा रूप भावपूजा के श्रेष्ठ आराधक हैं। 44
दिगम्बर ग्रन्थों में भी पूजा के चार प्रकारों का उल्लेख है। महापुराण में 1. सदार्चन (नित्यमह) 2. चतुर्मुख ( सर्वतोभद्र ) 3. कल्पद्रुम और 4. अष्टाह्निक इन चार पूजाओं का वर्णन है । 45
1. सदार्चन ( नित्यमह) पूजा - प्रतिदिन गन्ध, पुष्प, अक्षत आदि स्व सामग्री के द्वारा जिनेन्द्रदेव की पूजा करना सदार्चन अथवा नित्यमह पूजा