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सात क्षेत्र विषयक विविध पक्षों का समीक्षात्मक अनुशीलन ... 337
निश्राकृत द्रव्य - जिस कार्य विशेष के लिए धन दिया गया हो, उसी कार्य में उसका उपयोग करना निश्राकृत द्रव्य कहलाता है। यदि द्रव्य राशि आवश्यकता से अधिक हो तो उससे ऊपर-ऊपर के क्षेत्र में उसका प्रयोग हो सकता है।
कालकृत द्रव्य - विशेष रूप से पोषदशमी, अक्षय तृतीया, मन्दिर वर्षगाँठ आदि पर्वों के निश्चित दिन विशेष के लिए श्रावकों द्वारा दिया गया द्रव्य कालकृत द्रव्य कहलाता है। इसका उपयोग तत्सम्बन्धी कार्यों में ही हो सकता हैं।
अनुकंपा द्रव्य- दीन-दुखी, नि:सहाय, वृद्ध, अपंग, आपदा पीड़ित लोगों के लिए अथवा मानव सेवा के लिए अन्न पानी, वस्त्र, औषधि आदि का दान करना अनुकंपा कहलाता है और तत्सम्बन्धी द्रव्य अनुकम्पा द्रव्य कहलाता है।
आयंबिल खाता द्रव्य - आयम्बिल तप हेतु नकरे, चढ़ावे या कायमी तिथि के नाम पर एकत्रित किया गया द्रव्य आयम्बिल खाता द्रव्य कहलाता है। शुभ खाता द्रव्य - किसी भी शुभ कार्य के उद्देश्य से एकत्रित हुआ द्रव्य शुभ खाता द्रव्य कहलाता है। इसे सर्व साधारण खाता भी कहते हैं।
जिनशासन की विविध संस्था संचालकों को जिस खाते में जितना ब्याज आदि एकत्रित हुआ हो उसे उसी खाते में विवेक पूर्वक प्रयोग करना चाहिए। द्रव्य आवश्यकता से अधिक हो तो अन्य क्षेत्रों में उसी कार्य हेतु भेज देना चाहिए ऐसा जैनाचार्यों का मंतव्य है। उपर्युक्त सभी क्षेत्रों में देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, वैयावच्च द्रव्य एवं साधारण द्रव्य यह चार क्षेत्र विशेष रूप से जन प्रसिद्ध हैं। शंका- देवद्रव्य किसे कहते हैं? इसके कितने प्रकार हैं ?
समाधान- द्रव्य सप्ततिका में देवद्रव्य को परिभाषित करते हुए कहा हैओहारणबुद्धिए, देवाईणं पकप्पिअं च जया । जं धणधनप्पमुहं तं तद्व्वं इहं णेयं । ।
सामान्य बुद्धि से जिनेश्वर देव आदि के लिए जो धन धान्यादि पदार्थ जिस समय में कल्पित हो उसे देवद्रव्य कहा गया है। इस परिभाषा से यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस द्रव्य के लिए यह निश्चित निर्णय किया गया हो कि यह