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336... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता – मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... किसी भी श्रावक द्वारा भक्ति पूर्वक अर्पण किया गया द्रव्य जिन प्रतिमा क्षेत्र का कहलाता है।
2. जिनमन्दिर क्षेत्र- जिनमन्दिर के निमित्त से प्राप्त हुआ द्रव्य इसी प्रकार पंचकल्याणक, प्रभु भक्ति, जिनपूजा, आरती, मंगल दीपक, अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव, उपधान आदि की नंदी का नकरा, तीर्थमाला, रथयात्रा आदि के चढ़ावे जो भी तीर्थंकरों के उद्देश्य से बोले जाते हैं वह सभी जिनमन्दिर क्षेत्र का द्रव्य कहलाता है।
उपरोक्त दोनों क्षेत्रों को देवद्रव्य भी कहा जाता है।
3. जिनआगम क्षेत्र- ज्ञान भंडार, आगम आदि शास्त्रों का पूजन, कल्पसूत्र आदि बहराना, पाँच ज्ञान की अष्टप्रकारी पूजा, प्रतिक्रमण सूत्र आदि बोलने का द्रव्य 45 आगम पूजन आदि ज्ञान से सम्बन्धित जो भी द्रव्य एकत्रित किया जाता है वह जिन आगम क्षेत्र का द्रव्य कहलाता है।
4-5. साधु-साध्वी क्षेत्र- चारित्रधारी साधु-साध्वी की भक्ति वैयावच्च हेतु जो द्रव्य दानवीरों द्वारा प्राप्त होता है। दीक्षार्थी भाई-बहनों की दीक्षा हेतु चारित्र उपकरण बहराने का चढ़ावा। इसी प्रकार गुरु पूजन, कम्बली आदि उपकरण बहराने से सम्बन्धित एकत्रित द्रव्य साधु-साध्वी क्षेत्र का कहलाता है। इसे गुरु द्रव्य या वैयावच्च द्रव्य भी कहा जाता है।
6-7. श्रावक-श्राविका क्षेत्र- श्रावक-श्राविका से यहाँ तात्पर्य सामान्य गृहस्थ से नहीं है। जो भी वीतराग परमात्मा का अनुयायी हो, यत्किंचित् धर्म आराधना करता हो वह श्रावक कहलाता है। इनके निमित्त जो भी द्रव्य साधर्मिक भक्ति हेतु एकत्रित किया जाता है वह श्रावक-श्राविका क्षेत्र का द्रव्य कहलाता है। इनके निमित्त एकत्रित किए गए द्रव्य को साधारण द्रव्य भी कहते हैं।
ये सातों क्षेत्र जिन धर्म की नींव या मुख्य आधार हैं। इन्हीं के ऊपर जिनधर्म रूपी भव्य प्रासाद टिका हुआ है अत: इनका उत्थान जिनशासन का उत्थान है। इन क्षेत्रों में किया गया खर्च एवं समय का उपयोग ही सार्थक एवं अध्यात्म जगत को प्रशस्त करने वाला है।
इन सात क्षेत्रों के अतिरिक्त कुछ प्रसिद्ध क्षेत्र इस प्रकार हैं
जीवदया क्षेत्र- प्रतिष्ठा, दीक्षा, महापूजन, संवत्सरी प्रतिक्रमण आदि विशेष प्रसंगों पर जीवदया के निमित्त जो टीप की जाती है उसे जीवदया क्षेत्र द्रव्य कहते हैं।