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326... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
हाथीदांत के सिंहासन, धर्म साधना हेतु 984 धर्मशालाएँ, पौषधशालाएँ, उपाश्रय बनवाए, 26000 पुराने जिनमंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया, 2500 गृह मंदिर बनवाकर दिए। 24 हाथी दाँत की कारीगरी वाले सुन्दर रथ, 2500 काष्ठ रथ जिनमंदिरों में रथयात्रा हेतु दिए । शत्रुंजय, आबु, गिरनार इन महातीर्थों में एक-एक तोरण बनवाए जिन पर तीन-तीन लाख स्वर्ण मोहरों का खर्चा किया। उस समय में उन्नीस करोड़ रुपए के खर्च से शास्त्र ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियाँ बनवाकर शास्त्र भंडार स्थापित किए। 21 जैन महामुनियों का महोत्सव पूर्वक आचार्य पद विधान करवाया। 3 जैन शास्त्र भंडारों की स्थापना करवाई। 1304 हिन्दू मन्दिरों का जीर्णोद्धार जिसमें सोमनाथ का शिवमंदिर एवं पंजाब का सूर्य मंदिर शामिल है। 302 नूतन विविध हिन्दू संप्रदाय के मन्दिर तथा 64 मस्जिदें मुसलमानों की बनवाई। सार्वजनिक दानशालाएँ, प्याऊ, धर्मशालाएँ एवं अनेक सामाजिक एवं धार्मिक उत्थान के कार्य किए।
पेथडशाह- पेथडशाह ने देश के विभिन्न कोनों में 84 जैन मंदिर बनवाए, गिरनार तीर्थ के श्वेताम्बर - दिगम्बर विवाद में माला का चढ़ावा लेकर तीर्थ पर श्वेताम्बरों का वर्चस्व रखा तथा अनेक छ: री पालित संघ एवं धार्मिक अनुष्ठान करवाए।
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राजा कुमारपाल - सोलंकी महाराजा कुमारपाल हेमचंद्राचार्य के परमभक्त गुजरात में अनेकशः जैन मन्दिरों की स्थापना की। प्राचीन ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियाँ बनवाई। शास्त्र भंडार बनवाए। जैन धर्म की विशेष धर्म प्रभावना की ।
इसी प्रकार अनेक श्रावक एवं जिनधर्म अनुयायी राजकीय शासक हुए हैं। जिन्होंने समय-समय पर जिन धर्म की प्रभावना की । इन ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रागैतिहासिक काल से ही जिनप्रतिमा एवं जिनमंदिर निर्माण की परम्परा जैनों में रही है। आज भी अनेक जिनमंदिरों का निर्माण सुज्ञ श्रावकों के द्वारा आवश्यकता अनुसार समय-समय पर किया जाता है।
जिनपूजा एक शाश्वत विधान है। हर काल में जिन प्रतिमा एवं जिनमन्दिर की अवस्थिति रहती है । शंखेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा का इतिहास, शाश्वत तीर्थ एवं देवलोक में स्थित शाश्वत जिनालय इसी तथ्य को प्रमाणित करते हैं। बदलती हुई देश कालगत परिस्थितियों के कारण आज जिनपूजा एवं