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________________ जिनपूजा की प्रामाणिकता ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय संदर्भों में ... 293 बनाकर उसके हर आचरण एवं कार्य का अध्ययन एवं समीक्षा कर उसे Follow करता है। तभी वह व्यवहार जगत में एक सफल इंसान बन सकता है। इसी प्रकार आध्यात्मिक जगत में आत्मा के उत्कर्ष के लिए भी जीव को किसी न किसी आलंबन की आवश्यकता होती है। जिन प्रतिमा एवं जिनमन्दिर को तद्हेतु उत्कृष्ट आलंबन माना गया है। यहाँ कई लोग तर्क करते हैं कि आलंबन का हेतु है मन को एकाग्र करना। तो मन को अन्य उपायों से भी एकाग्र किया जा सकता है। जैसे कि व्यापारी जब नोट गिनता है तो मन एकाग्र रहता है, T.V. पर Film देखते हुए या कोई Novel या उपन्यास पढ़ते हुए चित्त उसी में तल्लीन हो जाता है। एक बिन्दु पर ध्यान केन्द्रित करके भी एकाग्रता बढ़ाई जा सकती है, तो फिर जिन मन्दिर एवं जिनप्रतिमा में क्या विशेष है ? क्यों उनका निर्माण किया जाए या उन स्थानों पर जाया जाए? यह कार्य तो घर में भी हो सकता है। यह बात एकदम सही है कि चित्त की एकाग्रता इन सब माध्यमों से भी साधी जा सकती है। परंतु यदि सूक्ष्मतापूर्वक चिंतन किया जाए तो इन सब कार्यों से मन तो एक स्थान पर केन्द्रित हो जाता है किन्तु इनसे अध्यवसायों की शुद्धता संभव है? आध्यात्मिक क्षेत्र का मुख्य लक्ष्य है परिणामों की शुद्धता। यदि परिणाम अच्छे नहीं हैं और चित्त एकाग्र है तो भी ऐसे लोग विश्व के लिए विनाशकारी हो सकते हैं। नोट गिनते हुए यदि एक नोट कम हो जाए तो मन में उथल-पुथल मच जाती है। Film में Sad scene या लड़ाई का Scene आते ही हमारा मन विषाद आदि भावों से भर जाता है, तो फिर बिना शान्त वातावरण के एकाग्रता की साधना कैसे हो सकती है? बाह्य कार्यों में तो व्यक्ति की रुचि के कारण उसका मन. कुछ समय के लिए स्थिर हो जाता है। एक तथ्य यह भी है कि चित्र आदि के द्वारा जितनी सरलता एवं सहजता से विषय को समझा जा सकता है, उतना शब्दों के माध्यम से नहीं, इसीलिए किसी विचारक ने कहा है- One picture worth more than thousasnd words I इसी प्रकार मूर्ति के द्वारा अपने लक्ष्य की अनुभूति जितनी सहज रूप से होती है, शेष आलम्बनों से उतना सहज नहीं होता। फिर वह आकृति मूर्ति, चित्र, Photo आदि किसी भी रूप में हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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