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जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...287
मानकर मानव जगत उनकी पूजा करता है, वे चिह्न परमात्मा का सम्मान, बहमान, विनय आदि करते हैं अत: ऐसे परमात्मा जगत वंदनीय हैं। परमात्मा की सर्वश्रेष्ठता दर्शाने हेतु ही सर्वोत्तम आठ मांगलिक चिह्न उनके समक्ष आलेखित किए जाते हैं। जीवन निर्माण का प्रमुख सूत्र- अष्टमंगल
अष्टमंगल में वर्णित आठ चिह्नों का प्रभाव विविध प्रकार से व्यक्ति के जीवन में देखा जाता है। अष्टमंगल का आलेखन ही नहीं उसका चित्रदर्शन, मुख्यद्वार आदि पर उसके पट का अंकन आदि भी अपना प्रभाव डालते हैं। परमात्मा के समक्ष अष्टमंगल का आलेखन करने से जीवन में मंगल एवं कल्याण की श्रृंखला आरंभ हो जाती है। इनके आकार आदि का प्रभाव जीवन में परिलक्षित होना प्रारंभ हो जाता है। उदाहरणत: लाश का स्वभाव है सड़ना-गलना आदि किन्तु जब वह पिरामिड में रखी जाती है तो वर्षों तक खराब नहीं होती यह उसके आकार का ही प्रभाव है। वैसे ही स्वस्तिक का आलेखन चारों गति से मुक्त होने के भाव उत्पन्न कर 'शिवमस्तु सर्व जगतः' की भावना को जागृत करता है। श्रीवत्स हृदय में सार्वभौम दयालता, विश्व प्रेम, करुणा आदि के भावों का वर्धन करता है। साथ ही आंतरिक एवं बाह्य संपत्ति तथा समृद्धि को बढ़ाता है। नंद्यावर्त्त ध्यान में स्थिरता का विकास करता है, आनंद एवं प्रमोद भाव को उत्पन्न करता है तथा विशिष्ट आध्यात्मिक शक्ति का संचरण करता है। भद्रासन का आलेखन करते हुए परमात्मा के सर्वोच्च स्थान की प्रतीति होती है। ऐसे भव्य आसन पर बैठने के बाद भी परमात्मा के मन में कभी अहंकार या मान कषाय आदि जागृत नहीं होता और न ही वे अपने पद का अभिमान या दुरुपयोग करते हैं। इससे मानव को भी दर्प से मुक्त होने की प्रेरणा मिलती है। उच्च स्थान पर स्थिरता तभी रहती है जब हृदय में सरलता हो। भद्रासन इसी का संदेश देता है। वर्धमानक अर्थात सम्पुटाकार दीपक। यह परमात्मा के अनंत ज्ञान प्रकाश का सूचक है। सम्पुट अर्थात किसी वस्तु को एक सीमित दायरे में नियंत्रित रखना, अनुशासन में रखना। इसी प्रकार मन को नियंत्रित एवं अनुशासित रखते हुए आत्मज्ञान को जागृत करने की प्रेरणा भी वर्धमानक देता है।
जिस प्रकार दीपक की ज्योति निरंतर ऊर्ध्वगामी रहती है वैसे ही हमारे शुभ भाव भी निरंतर ऊर्ध्वगामी बनें। कलश को महामंगलकारी एवं पूर्णता का