________________
286... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... कर लें। इन्हीं कारणों से दर्पण को अष्ट मंगल में कल्याण रूप माना गया है। अष्टमंगल मानव जगत को एक ईश्वरीय वरदान
मंगल की स्थापना किसी न किसी रूप में प्रत्येक संप्रदाय एवं समाज में की जाती है। कहीं पर गणेश को मंगल माना गया तो, कहीं पर किसी यंत्र विशेष को, कहीं पर लाफिंग बुद्धा Lucky माना जाता है, तो कोई पुराने सिक्के को मांगलिक मानते हैं। कहने के लिए शब्द अलग हो सकते हैं मानने का तरीका अलग हो सकता है किन्तु ध्येय एक ही है कि जीवन से विपदाओं का नाश हो तथा सुख, सौभाग्य एवं समृद्धि का वर्धन हो। जीवन में सफलता एवं उन्नति का साक्षात्कार हो। कई लोग कहते हैं कि कर्म के अनुसार ही जब व्यक्ति को जीवन में सब कुछ मिलता है तो फिर मंगल की आवश्यकता क्यों? तो कई लोग कहते हैं कि पुरुषार्थ के अनुसार व्यक्ति को सब कुछ प्राप्त होता है। मंगल आदि व्यक्ति को पुरुषार्थ हीन बताते हैं। कर्म के अनुसार एवं पुरुषार्थ के बल पर व्यक्ति को अवश्य सब कुछ प्राप्त होता है परन्तु जैन दर्शन के अनुसार कर्मों में परिवर्तन भी होता है और पुरुषार्थ समान होने पर भी सभी को एक समान परिणाम मिले यह आवश्यक नहीं।दोनों का समन्वय एवं भाग्य का सहयोग सभी मिलकर कार्य सिद्धि में सहायक बनते हैं।
पूर्वाचार्यों एवं विद्वानों ने मंगल चिह्नों को आध्यात्मिक उत्थान हेतु जहाँ आवश्यक माना वहीं वैज्ञानिकों ने इनके शारीरिक, मानसिक एवं वातावरण के प्रभाव पर चिंतन किया है। ___ ये मंगल चिह्न आदर्श रूप भी होते हैं और व्यक्ति के सामने जैसा आदर्श, जैसी प्रेरणा होती है वैसा ही उसका जीवन बनता है। मंगल प्रतीक सामने होने से हृदय में विश्व कल्याण, मैत्री आदि के उत्तम भाव ही उत्पन्न होते हैं। व्यक्ति के मन मस्तिष्क पर भी इनका विशिष्ट प्रभाव देखा जाता है। मनुष्य के मन एवं जीवन पर आकार का विशेष प्रभाव पड़ता है। स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्यावर्त्त आदि जो अष्ट मंगल के चिह्न हैं इन्हें परमात्मा के समक्ष रखने का ध्येय, परमात्मा के लिए मंगल की कामना करना नहीं है अपितु परमात्मा के माध्यम से स्वयं के जीवन के लिए मंगल का विस्तार करना है। तीर्थंकर परमात्मा के आगे यह अष्टमंगल इसलिए चलते हैं कि प्राणी मात्र को परमात्मा की उच्चता, श्रेष्ठता आदि का बोध हो। सामान्यतया जिन्हें मंगल या कल्याण का सूचक