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282... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता – मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... हिटलर गले में उल्टा स्वस्तिक पहनता था और जिस दिन उसकी मृत्यु हुई उस दिन उसके गले में वह स्वस्तिक नहीं था।
इस प्रकार स्वस्तिक सार्वत्रिक एक मंगल प्रतीक है। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे पूज्य, सम्माननीय एवं प्राचीन माना गया है। विश्वप्रेम का पावन प्रतीक श्रीवत्स
श्रीवत्स अर्थात श्रीपुत्र या लक्ष्मी पुत्र। यह अंत रहित गांठ या विशेष रत्न के रूप में भी जाना जाता है। विष्णु सहस्रनाम के अनुसार यह विष्णु का एक नाम है। जैन तीर्थंकरों एवं विष्णु के वक्षस्थल पर तथा बुद्ध के चरण में यह चिह्न होने का उल्लेख शास्त्रकार करते हैं।
जैनाचार्यों के अनुसार यह चिह्न सभी तीर्थंकरों के हृदय पर होता है। यह उनके हृदय में रही अनंत करुणा, निश्छल मैत्री एवं विश्व प्रेम का प्रतीक है।
जैन, हिन्द एवं बौद्ध इन तीनों धर्मों में इसे अष्टमंगल चिह्नों में से एक माना गया है। जो शणैः शणै महापुरुषों के लक्षण के रूप में परिवर्तित हो गया। श्री पुत्र होने से हिन्दू धर्म में इसे सम्पन्नता एवं समृद्धि का सूचक माना है। बौद्ध धर्म में इसे प्रेम, बुद्धि एवं भावों के सामंजस्य का प्रतीक माना है। यह शून्यता, प्रतीत्य समुत्पाद, प्रज्ञा,करुणा आदि का भी सूचक है।
श्रीवत्स की आकृति चतुर्दल पुष्प के रूप में, नाग मिथुन रूप में या एक ऐसी आकृति जिसका आदि अंत ज्ञात न हो पाए उस रूप में देखी जाती है।
श्रीवत्स के दर्शन मात्र से हृदय में दया, करुणा, मैत्री, प्रेम, सामंजस्य आदि के भाव जागृत होते हैं अत: सभी के प्रति मंगल भावना उत्पन्न करने के कारण यह मंगलरूप है। यह सार्वभौमिक कल्याण एवं भावों का द्योतक है। 'श्री' शब्द को वैसे भी मंगल एवं कल्याण का सूचक माना है। इस प्रकार श्रीवत्स एक मांगलिक चिह्न है जो विश्वकल्याण के भावों का वर्धन करता है। देवविन्यास का सूचक नंद्यावर्त्त
नंद्यावर्त यह स्वस्तिक का एक पवित्र किन्तु जटिल रूप है और उच्च ध्येय का सूचक है। इसे गहुंली भी कहा जाता है। जैन धर्म में विशेष प्रसंगों पर स्वस्तिक के स्थान पर नंद्यावर्त्त का आलेखन किया जाता है। यह नौ कोण से युक्त होता है जो कि देवत्व के कोनों द्वारा गठित विन्यास का प्रतीक है।