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जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...261 पूजन हेतु द्रव्य एकत्रित करते हुए एवं पूजन विधान सम्पन्न करते हुए अप्रमत्त रहना आवश्यक है।
कई लोग कहते हैं कि द्रव्य चढ़ाने में हिंसा होती है अत: द्रव्यपूजा हिंसा युक्त है। परंतु उपरोक्त परिभाषा से यह सिद्ध हो जाता है कि द्रव्य चढ़ाने से कदापि हिंसा नहीं होती, यह एक भ्रान्त मान्यता है। __ जिनपूजा के द्वारा उत्कृष्ट निर्वद्य अहिंसा का पालन होता है। चढ़ाए जाने वाले द्रव्यों को अभयदान मिलता है। नि:स्वार्थ भक्ति से मोक्ष प्राप्त होता है। पूजा में वही द्रव्य परमात्मा के समक्ष चढ़ाए जाते हैं जिनका प्रयोग श्रावक अपने दैनिक कार्यों हेतु भी करता है। इनका प्रयोग करते हुए मन में त्याग एवं समर्पण भावों का वर्धन होता है। परमात्म गुणों का स्मरण एवं चिंतन करने से आत्मा में परमात्म गुणों का उद्भव होता है। भक्ति में तल्लीनता आती है। चारित्र एवं सम्यक्त्व की निर्मलता बढ़ती है।
एक उच्च अधिकारी, मिनिस्टर या किसी बड़े पदधारी व्यक्ति के पास हम खाली हाथ नहीं जाते क्योंकि इससे उनका अविनय होता है, तो फिर विश्व में सर्वश्रेष्ठ त्रिलोकीनाथ परमात्मा के दरबार में खाली हाथ कैसे जा सकते हैं? यह एक सामान्य लोकव्यवहार एवं परमात्मा का आवश्यक विनय है।
परमात्मा को द्रव्य अर्पण करते हुए श्रावक पदार्थजन्य राग से मुक्त होने एवं अनाहारी पद को प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं। जिनपूजा पाँचों इन्द्रियों के प्रति विषयासक्ति को न्यून करती है तथा निजस्वभाव में रमण करवाती है।
स्वयं के भोगोपभोग हेतु द्रव्य प्रयोग जहाँ कर्मबंधन में हेतुभूत बनता है वहीं जिनपूजा आदि शुभकार्यों में किया गया द्रव्य प्रयोग कर्म मुक्ति का कारण बनता है।
. प्रश्न हो सकता है कि एक ही द्रव्य कर्म मुक्ति एवं कर्म बंधन दोनों का हेतु कैसे बन सकता है? । ___पानी की एक बूंद जब सांप के मुँह में जाती है तो विष बन जाती है और वही पानी की बूंद स्वाति नक्षत्र में सीप के भीतर जाने पर मोती का रूप ले लेती है। Doctor के हाथों में जो छुरी प्राण रक्षा के लिए उपयोग में आती है वही छुरी कसाई या डाकू के हाथ में जाने पर प्राण हरण में निमित्त बनती है। ठीक इसी प्रकार श्रावक के द्वारा स्वयं के उपभोग में प्रयुक्त द्रव्य संसार सर्जन एवं आसक्ति