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जिन पूजा विधि की त्रैकालिक आवश्यकता एवं... ...257 या अप्रासंगिक प्रतीत हो सकती है। किन्तु अध्यात्म उत्कर्ष के इच्छुक साधकों के लिए वर्तमान के भोगमय एवं पापमय युग में यह क्रिया अध्यात्म मार्ग पर चुंबक का कार्य कर सकती है, भौतिक चकाचौंध में मार्गभ्रष्ट होने से रोक सकती है और परमात्म भक्ति में अग्रसर कर सकती है।
अत: वर्तमान समय में लौकिक परिस्थितियों वश त्रिकाल पूजा करना कठिन अवश्य हो सकता है फिर भी पूर्वकाल की अपेक्षा यह अधिक प्रासंगिक प्रतीत होती है, क्योंकि इस पंचम काल में जिनबिम्ब एवं जिनागम ये दोनों ही संसार सागर पार करने के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। जिनागम पढ़ना सभी के लिए संभव नहीं है परन्तु जिनपूजा करना तो संभव है। कुछ समय पूर्व तक जब विकास अपने शिखर पर नहीं था तो भौतिक संसार में फँसने के साधन भी उतने अधिक नहीं थे। पर आज की विषम परिस्थितियों में जहाँ मानसिक अशांति एवं पथभ्रष्ट होने के कारण पग-पग पर मिलते हैं, वहाँ परमात्मा की प्रशान्त-तेजस्वी मुख मुद्रा के त्रिकाल दर्शन हमारे लिए आत्म जागृति में उन्नायक एवं मानवीय गुणों के वर्धक हो सकते हैं। नकारात्मक एवं द्वेषात्मक वातावरण में सकारात्मक भावों का सृजन कर सकते हैं। अत: आत्मोत्थान के इच्छुक जीवों के लिए त्रिकाल दर्शन Vitamin Capsule की भाँति शक्तिवर्धक, गुणवर्धक एवं हितकारक है। दर्शन किसका और किसलिए?
प्रात:काल में देवाधिदेव श्री तीर्थंकर परमात्मा का नित्य दर्शन करने का उल्लेख जैन शास्त्रों में किया गया है। जैन साधु-साध्वी जो कि आवश्यक कारण उपस्थित होने पर ही गमनागमन करते हैं, उनके लिए गमन के चार मुख्य हेतुओं में जिनदर्शन एक प्रमुख कारण है। अत: जिनदर्शन जैन साधु एवं श्रावक की एक परमावश्यक क्रिया है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिनमंदिर होने पर भी यदि कोई जिनदर्शन न करे तो वह प्रगाढ़ अंतराय का बंधन करता है। परमात्म दर्शन न करने पर साधु को दो उपवास का दंड आता है। इससे जिनदर्शन की महत्ता स्वत: प्रमाणित हो जाती है।
प्रभु दर्शन कल्याणकारी एवं मंगलकारी माना गया है। यह भौतिक एवं आध्यात्मिक सिद्धियों को प्रदान करता है तथा मिथ्यात्व आदि पापों का नाश करता है। कहा भी है