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210... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म... स्टैण्डयुक्त कटोरी वाला विशेष उपकरण धूपकडुच्छुय या धूपदानी कहलाता है। परमात्मा के समक्ष धूप पूजा करने हेतु एवं प्रज्वलित धूप को रखने हेतु इसका प्रयोग होता है।
घंटा- अभिषेक , आरती आदि के समय तथा जिनदर्शन से प्राप्त आनंद की अभिव्यक्ति हेतु बजाया जाने वाला पीतल का उपकरण विशेष घंटा कहा जाता है। प्राय: सभी धर्म के मन्दिरों में घंटा होता है। इसकी ध्वनि को विशेष प्रभावी माना जाता है।
दीप पात्र- दीपक रखने का उपकरण विशेष। जिसमें घी डालकर दीपक प्रकट किया जा सकता है उसे दीप पात्र कहा जाता है। यह दीपक पूजा हेतु प्रयुक्त किया जाता है। ___ मंगलदीपक पात्र- हाथों में पकड़ सकें ऐसा स्टैण्ड युक्त दीपक जो मंगल दीपक करते समय प्रयुक्त होता है उसे मंगल दीपक पात्र कहते हैं। आरती के बाद मंगलदीपक के समय इसका प्रयोग होता है।
आरात्रिक पात्र (आरती)- पाँच दीपक या 108 दीपक वाला स्टैण्ड युक्त विशेष उपकरण आरात्रिक पात्र कहलाता है। आरती के समय इसका प्रयोग किया जाता है।
कंदील वाला दीपक- चारों तरफ कांच लगा हआ दीपक रखने का विशेष उपकरण, कंदील वाला दीपक कहलाता है। हवा के वेग से दीपक बुझ न जाए इस हेतु इसका प्रयोग किया जाता है। जैन मन्दिरों में इसी प्रकार के दीपक विशेष रूप से प्रयुक्त किए जाते हैं।
झालर- कांसी की थाली एवं लकड़ी का छोटा डंडा या बेलन जो थाली बजाने हेतु प्रयुक्त किया जाता है। इन दोनों का सम्मिलित रूप झालर कहा जाता है। पूजन आदि में इसका विशेष प्रयोग होता है।
मृदंग (डफली)- परमात्म भक्ति हेतु उपयोगी एक विशेष वाद्य उपकरण। यह थाली के समान गोल होता है। पूरे गोलाकार घेरे में या किनारी में मधुर ध्वनि प्रस्तुत करने हेतु छोटी-छोटी सिक्के जैसी दो-दो प्लेट लगी होती है। पूजनभक्ति आदि में इसका विशेष प्रयोग किया जाता है।
कलश- चाँदी या सिल्वर पॉलिश (झरमट) का कुंभाकार कलश जिसका प्रयोग शांति स्नात्र आदि में किया जाता है। इसे मंगल कलश के रूप में भी प्रयुक्त किया जाता है।