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________________ मन्दिर जाने से पहले सावधान ...205 इस प्रकार वर्तमान प्रचलित वरख निर्माण की विधि को देखते हुए आंगी आदि में वरख का प्रयोग कर सकते हैं। जहाँ तक मूर्तियों पर इनके दुष्प्रभाव की बात है तो उस हेतु श्रावकों को अवश्य सावधान हो जाना चाहिए। इसी के साथ आंगी के बढ़ते हुए प्रचलन के विषय में भी विज्ञ श्रावकों को विचार अवश्य करना चाहिए। जिनपूजा श्रावक वर्ग की एक विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण क्रिया है। इस पंचम काल में जिनपूजा एवं जिनभक्ति को ही मुक्ति का परम आधार माना है। परंतु यह क्रियाएँ मुक्ति का आधार तब ही बन सकती है जब इन्हें समुचित रूप से किया जाए। इनमें की गई छोटी सी अविधि या प्रमादाचरण इन्हें आराधना के स्थान पर आशातना का कारण बना देता है। चर्चित अध्याय के माध्यम से श्रावक वर्ग को जिन मन्दिर में आचरण योग्य सूक्ष्मातिसूक्ष्म तथ्यों से परिचित करवाने का लघु प्रयत्न किया है ताकि हमारी क्रियाएँ सम्यक रूप में मुक्ति साधना में सहायक बन सकें। संदर्भ-सूची 1. तंबोल पाण भोयण, पाणहत्थीभोग सुअण निट्ठिवणो । ___मुत्तुच्चारं जूअं, वज्जइ जिण मन्दिर स्संतो। (क) चैत्यवंदन कुलक, गा. 14, चैत्यवंदन कुलक, पृ. 99 . (ख) श्री श्राद्धविधि प्रकरण, पृ. 172 2. वही, पृ. 172-173 3. (क) वही, पृ. 173 (ख) निट्ठीवणमिति निष्ठोवन। चैत्यवंदन कुलक, पृ. 214
SR No.006250
Book TitlePuja Vidhi Ke Rahasyo Ki Mulyavatta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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