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204... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
उस वरख में भी लग सकता है। अतः जिनपूजा आदि में इसका प्रयोग कैसे हो सकता है? इस कारण भी कई लोग वरख को मांसाहारी पदार्थ मानकर उसे वर्जित करते हैं।
उपरोक्त तथ्य पूर्ण रूपेण सत्य है परंतु चमड़े पर निर्माण होने से वरख मांसाहारी पदार्थ नहीं हो जाता। कई आचार्यों एवं विशेषज्ञों का मत है चाँदी अशुद्धि को ग्रहण नहीं करती अतः वरख मांसाहारी पदार्थ नहीं है।
वर्तमान में अधिकतर बड़ी कम्पनियों में वरख का निर्माण मशीनों द्वारा ही किया जाता है। वर्तमान की बढ़ती वरख की खपत को प्राचीन रीति से पूर्ण करना असंभव है। निर्माण प्रक्रिया ही बदल जाने से वरख को निषिद्ध करने का कारण ही समाप्त हो जाता है।
आज भी कुछ स्थानों पर प्राचीन प्रक्रिया से वरख बनाया जाता है। इस विषय में श्रावक खरीदते समय अपना उपयोग रखें तो इस दोष से बचा जा सकता है। कई लोगों का कहना है कि वरख के अति प्रयोग का दुष्प्रभाव मूर्तियों पर विशेष रूप से देखा जा रहा है। मूर्तियों की चमक कम हो गई है एवं पत्थर में खुरदरापन आदि आने लगा है। कई बार वालाकुंची का प्रयोग मात्र वरख को निकालने हेतु करना पड़ता है। अतः मूर्तियों पर वरख का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
“अति सर्वत्र वर्जयेत्” किसी भी वस्तु का अतिप्रयोग हानिकारक होता है । आंगी का विधान मूढ़ एवं प्रथम श्रेणी के जीवों को आकर्षित करने हेतु किया गया है। परमात्मा की आंगी विविध द्रव्यों से बनाई जाती है परन्तु वरख द्वारा निर्मित आंगी का एक विशिष्ट आकर्षण एवं प्रभाव होता है। आंगी को देखकर चित्त में परमात्म भक्ति के विशिष्ट भाव उमड़ते हैं । परमात्मा जो तीन लोक के नाथ हैं, समस्त ऋद्धि-सिद्धियाँ जिनके चरणों में आलोडन करती हैं, उन्हें विशिष्ट बहुमूल्य पदार्थों से ही अलंकृत करना चाहिए। अत: आंगी में वरख का उपयोग सर्वथा उचित है । आजकल मिलावट वाले वरख भी मार्केट में आने लगे हैं जिनकी वजह से मूर्तियों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है, अतः वरख खरीदी के समय श्रावकों को सचेत रहना चाहिए।
मूर्तियों को अन्य पदार्थों के हानिकारक प्रभावों से बचाने हेतु आंगी को खोखे पर बनाना चाहिए। केसर आदि का प्रयोग भी मौसम के अनुसार करना चाहिए।