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अष्ट प्रकारी पूजा का बहुपक्षीय अनुशीलन ... 159
बना सकते हैं। जिस प्रकार शल्य रहित पोली भूमि में ही फसल प्राप्ति हेतु बीज डाले जा सकते हैं, उसी तरह राग-द्वेष आदि कषायों से निर्मल हुए चित्त में ही सिद्ध अवस्था के बीज डाले जा सकते हैं।
जलपूजा से करें अंतर मल का शोधन
अरिहंत परमात्मा का जल आदि द्रव्यों से अभिषेक करते समय मन को उल्लास एवं आनंद से आप्लावित करते हुए परमात्मा के निर्मल स्वरूप का चिंतन तथा चित्त में अहोभावों का प्रस्फुटन करना चाहिए ।
हे परमात्मन्! आप तो द्रव्य और भाव दोनों ही प्रकार के मैल से रहित हो चुके हैं, अतः आपको तो न्हवण की कोई आवश्यकता नहीं है किन्तु हे नाथ! आपको न्हवण करवाकर मैं स्वयं कर्मों से निर्मल होना चाहता हूँ ।
जिस प्रकार जल तृष्णा को बुझाता है, मैलेपन को साफ करता है, ताप का शमन करता है वैसे ही इस द्रव्य के साथ भाव रूपी जल का मिश्रण कर आपका अभिषेक करते हुए आत्मा के साथ लगे हुए अनादिकालीन कर्म रूपी मैल, विषय-कषाय रूपी तृष्णा तथा त्रिविध तापों से स्वच्छ एवं निर्मल बनूं।
हे त्रिलोकीनाथ! कितना सुंदर और नयनाभिराम दृश्य होता होगा जब स्वयं सौधर्मेन्द्र आपको गोद में लेकर बैठते है एवं समस्त देव-देवी गण हर्षित होकर स्वसामर्थ्य के अनुरूप भक्ति का आनंद लेते हैं। साथ ही विविध नदियों एवं समुद्रों का सुगंधित जल लाकर आपका न्हवण करने के लिए लालायित रहते हैं।
हे परमात्मन्! संभव है कि मैंने भी कभी देवरूप में आपका जन्माभिषेक किया होगा। आज यद्यपि देवों के जितना सामर्थ्य मुझमें नहीं है पर मुझसे जो बन पड़ा मैं वह लेकर उपस्थित हुआ हूँ।
हे कृपालु ! आप मेरी सामग्री को नहीं मेरे भावों को देखिए। आज अगर मुझे पंख मिल जाए तो मैं भी विविध नदियों का जल ले आऊँ, पर मेरे लिए यह संभव नहीं है अतः श्रेष्ठ पाँच वस्तुओं को मिलाकर पंचामृत से ही मैं आपका स्नपन करता हूँ ।
इस पंचामृत के द्वारा मुझे पंच महाव्रत की संप्राप्ति हो, आपके अभिषेक के प्रभाव से चारित्र मोहनीय का विनाश हो एवं मेरे हृदय में संयम ग्रहण की भावना जागृत हो ।
हे प्रभु! आपके शरीर से उतरती हुई जलधाराएँ देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा