________________
158... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
• आरती के ऊपर हाथ घुमाने आदि की परम्परा हमारे यहाँ नहीं है अत: आरती, मंगल दीपक आदि पर हाथ नहीं घुमाना चाहिए।
• कुमारपाल राजा की आरती जैसे भक्ति आयोजनों में समय एवं आचरण का ध्यान रखना चाहिए। लाभार्थियों को तैयार करने के लिए Beauty Parlour आदि भेजना एवं उनके द्वारा हिंसात्मक प्रसाधनों का उपयोग करना एक सर्वथा अनुपयुक्त आचरण है। भावों की वीणा पर बजाएं मुक्ति की सरगम ।
जैन धर्म भावना प्रधान धर्म है। इसमें जीव भावों के आधार पर ही एक क्षण में धरती से आसमान पर पहँच जाता है तो निम्न भावों के कारण वह पलभर में शिखर से तलहटी पर भी आ सकता है।
भावों में वह शक्ति है पहुँचा दे शिखर उत्तुंग भावों की ही नाव पर तिरकर बनते अरिहंत
भावों से ही मुक्ति है भावों से भव-भव का फंद ___ भावों की उज्ज्वलता के लिए जिनपूजा सर्वोत्तम भावों को अर्थात मन को नियन्त्रित करना या उसे सही दिशा देना कोई सहज कार्य नहीं है। मन को जितना अंकुशित किया जाए वह उतना ही विपरीत दिशा में भागता है। अत: मन को नकारात्मक मार्ग से रोकने के लिए सकारात्मक दिशा की ओर अभिमुख करना जरूरी है। जिनपूजा भावों के विशुद्धिकरण हेतु अग्नि के समान है। मन्दिर रूपी अग्नि में प्रवेश करते ही आत्मा रूपी स्वर्ण में लगे हुए समस्त मलीन भाव विनष्ट हो जाते हैं।
जैनाचार्य कर्मबंधन में क्रिया की अपेक्षा भावों को अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। इसीलिए कहा भी है. भावे भावना भाविए, भावे दिजे दान ।
भावे जिनवर पूजिए, भावे केवलज्ञान ।। तीर्थंकर परमात्मा भी “सवि जीव करूं शासन रसी” की भावना करते हुए तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन करते हैं।
अष्टप्रकारी पूजा के दौरान विविध द्रव्यों को चढ़ाते हुए श्रावक जन स्वयं को विविध भावनाओं से भावित करके अपनी मनोभूमि को निर्मल एवं स्वच्छ