________________
152... पूजा विधि के रहस्यों की मूल्यवत्ता - मनोविज्ञान एवं अध्यात्म...
• धूप बत्ती को परमात्मा के नाक के पास नहीं ले जाना चाहिए।
• धूप करके धूपदानी को यथास्थान रखना चाहिए। धूप बत्ती आदि को भी दीपक आदि की थाली में नहीं रखना चाहिए।
• स्वद्रव्य से पूजा करने वालों को धूप दीप आदि जलाने हेतु माचिस आदि भी स्वयं का ही उपयोग करना चाहिए। दीपक पूजा सम्बन्धी सावधानियाँ
• दीपक पूजा करते समय दीपक थाली में रखकर दोनों हाथों से पकड़ना चाहिए।
• परमात्मा के दाईं तरफ खड़े रहकर मूल गंभारे के बाहर दीपक पूजा करनी चाहिए।
• दीपक के लिए बाती शुद्ध रूई से बनानी चाहिए। घी में गुड़,कपूर, कुमकुम आदि द्रव्य मिलाने चाहिए। इससे पुजारी आदि उस धृत का उपयोग नहीं कर सकते तथा घृत में जीवोत्पत्ति भी नहीं होती।
• दीपक को जिनालय में ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहाँ से किसी के कपड़े आदि नहीं जलें।
• अधिक समय तक जलने वाले दीपक या अखंड दीपक को चिमनी आदि से ढंकना चाहिए। खुले दीपक पर सूक्ष्म जीव आदि गिरने से उनके हिंसा की संभावना रहती है। __ • अखंड दीपक को सावधानी पूर्वक योग्य स्थान पर स्थापित करना चाहिए ताकि वह वायु आदि के वेग से बुझ न जाए।
कई बार अखंड दीपक में घी आदि पूर्ण मात्रा में नहीं होने से दीपक के आस-पास कालापन छा जाता है, सम्पूर्ण गंभारा एवं प्रतिमाजी कई बार काले पड़ जाते हैं तथा फानस का काँच भी फूटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। जिसे लोग देवी-देवताओं का चमत्कार मानकर मिथ्या भ्रान्तियाँ फैलाते हैं। यथार्थतः तो वह हमारी असावधानी एवं लापरवाही का परिणाम होता है।
• अखंड दीपक आदि जलाने हेतु देवद्रव्य का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
• आजकल मंदिर में रोशनी एवं सजावट हेतु दीपक के स्थान पर रंगबिरंगी लाइटों का प्रयोग होने लगा है। यह एक अनुचित प्रक्रिया है। इसके द्वारा मंदिरों का वातावरण अशुद्ध तथा प्रतिमाओं का तेज एवं प्रभाव क्षीण हो रहा है।